महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय 


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विरहपूर्ण गीतों की गायिका महादेवी वर्मा आधुनिक युग की मीरा कही जाती है। इनका जन्म फर्रुखाबाद जनपद में एक संपन्न कायस्थ परिवार में सन १९०७ में हुआ था। इनके पिता का नाम गोविंदप्रसाद वर्मा तथा माता का नाम हेमरानी था। प्रयाग महिला विद्यापीठ में कार्य करते हुए सन १९६८ में प्रधानाचार्य पद से आपने अवकाश ग्रहण किया और तब से मानव सेवा तथा साहित्य साधना में तल्लीन रही। आधुनिक हिन्दी साहित्य के ख्याति प्राप्त कवित्रियों में आपका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। आपको ‘पद्मश्री’ एवं “भारतीयज्ञान पीठ” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है। ११ सितम्बर १९८७ के दिन महादेवी वर्मा का निधन हो गया ।

महादेवी वर्मा का विरह

महादेवी वर्मा जी वेदनाभाव की कवियित्री है। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है की ” दुःख मेरे निकट जीवन का

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
महादेवी वर्मा

ऐसा काव्य है,जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँध रखने की क्षमता रखता है। हमारे असंख्य सुख हमें चाहे मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक भी न पहुँचा सके ,किंतु हमारा एक बूंद भी जीवन को अधिक उर्वर बनाये बिना नही गिर सकता । विश्व जीवन में अपने जीवन को,इस प्रकार मिला देना ,जिस प्रकार ,एक -एक जल बिन्दु समुद्र में मिल जाता है,कवि का मोक्ष है। मुझे दुःख के दोनों ही रूप प्रिय है,एक वह जो मनुष्य के संवेदनशील ह्रदय को सारे संसार से एक अविछिन्न बंधन में बाँध देता है और दूसरा वह जो काल और सीमा के बंधन में पड़े असीम चेतना का क्रंदन है।” महादेवी जी पीड़ा में प्रियतम और प्रियतम में पीड़ा को खोजती है। उनका कहना है – “पीड़ा मेरे मानस से भीगे पटसी लिपटी है।” उन्होंने अपना परिचय इस प्रकार व्यक्त किया है :-


मै नीर भरी दुःख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी ,कल थी मिट आज चली

उनके काव्य का आधार वास्तव में प्रेमात्मक रहस्यवाद ही है। उन्होंने अपने अज्ञात प्रियतम को स्वरूपित कर,उससे अपना सम्बन्ध जोड़ा है। उन्होंने अपने रहस्यवाद की अभिव्यंजना को चित्रात्मक भाषा में व्यक्त किया है। उनके काव्य में शुद्ध छायावादी प्रकृति -दर्शन मिलता है।

नीहार ,रश्मि ,नीरजा ,सांध्यगीत ,दीपशिखा और यामा ,आपको प्रसिद्ध काव्य कृति है। प्रथम तीन पुस्तकें एक साथ यामा नाम से भी प्रकाशित हुई है। निहार में इनकी प्रारंभिक कविताओं का संग्रह है। इसमे इनका रहस्यवादी चिंतन बहुत स्पष्ट नही हो पाया है। इसमे प्रकृति प्रेम और व्यक्तियों के बीच रहस्यवाद या अलौकिक प्रेम का चित्रण अधिक है। ‘रश्मि’ काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। नीरजा और सांध्यगीत में उनके गंभीर चिंतन के स्पष्ट दर्शन होते है। जीवन की नस्वरता पर प्रकाश डालती हुए वे कहती है –
विरह का जलजात जीवन,विरह का जलजात
तरल जलकण से बने ,घनसाक्षणिक मृदुगात

महादेवी वर्मा का कलापक्ष 

महादेवी वर्मा जी का कलापक्ष भी अत्यन्त उज्जवल है। उन्होंने अपनी सफल काव्य शैली के द्वारा लाक्षणिक प्रयोग कर सूक्ष्मतर भावों को अर्थवत्ता प्रदान की है। उपमा -रूपक अलंकारों का प्रयोग इन्होने बड़ी सफलता के साथ किया है। डॉ.इन्द्रनाथ मदान के शब्दों में – छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति तत्व को मिलाया ,निराला ने मुक्तक छंद दिया,पन्त ने शब्दों को खराद पर चढा कर सुडौल और सरस बनाया ,तो महादेवी जी ने उसमे प्राण डाले ।
महादेवी जी छायावाद के चार स्तंभों में से एक थी। कवियित्री होने के साथ-साथ वे सशक्त गद्य लेखिका भी थी। उनका गद्य साहित्य अपेक्षाकृत अधिक प्रखर और अनुभूति पूर्ण है। ‘स्मृति की रेखाएं’ ,’अतीत के चल चित्र ‘,’मेरा परिवार’ आदि उनकी गद्य रचनाएं है। इन रचनाओं में उन्होंने उपेक्षित प्राणीयों के करुणारंजित चित्र अंकित किए है,जिनके साथ पाठक आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। ‘पथ के साथी’ में लेखिका ने अपने सामयिक साहित्यकारों को अंकित किया है और ‘श्रृंखला की कडियाँ’ में उन्होंने नारी जगत की समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।


महादेवी वर्मा की रचनाएँ

महादेवी वर्मा की निम्नलिखित रचनाएँ हैं – 
काव्य – निहार ,रश्मि ,नीरजा ,यामा ,दीपशिखा ,सांध्यगीत ।
आलोचना – हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य
संस्मरण एवं रेखाचित्र – अतीत के चल चित्र ,पथ के साथी ,स्मृति की रेखाएं तथा मेरे परिवार
निबंध -संग्रह – साहित्यकार की आस्था ,निबंध,श्रृंखला की कडियाँ
संपादन – चाँद तथा आधुनिक कवि ।

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