विडंबना / दीप्ति श्री “पाठक”

दीप्ति श्री “पाठक”

एक पन्ना पलटती हूँ ,
विहंगम दृष्टि में ,
जिसकी हर पंक्तियाँ हैं श्वेत ,
फिर भी समझती हूँ ,
और समझती है संवेदना ,
और पढ़ती हूँ मृत्यु !

और दूसरा पन्ना पलटती हूँ ,
जिसकी हर पंक्तियों में
गया है उकेरा ,
स्वार्थ कि मोतियाँ ,
उम्मीद कि धुँधली गाथा ,
लक्ष्य ढूँढते इरादे ,
परिभाषा ढूँढता प्रेम ,
आदमी ढूँढते हुए रिश्ते ,
कान्धा ढूँढता हुआ लाश ,
कहीं रोटी ढूँढती भूख ,
कहीं भूख ढूँढती रोटियाँ ,

सब हैं इस पन्ने पर ,
लेकिन ,
वेदना के घेरे में ,
ऐसे कैद हैं हर शब्द ,
कि मैं बार – बार
ढूँढती हूँ इसमें जीवन ….!

यह रचना दीप्ति श्री “पाठक” जी द्वारा लिखी गयी है ,जोकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं. 

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