राष्ट्रीय चरित्र का अभाव

राष्ट्रीय चरित्र का अभाव

राष्ट्रीय चरित्र
आज मैं देश के राष्ट्रीय चरित्र के ह्रास पर चिंता व्यक्त करना समीचीन है  |आज राष्ट्र स्वाभिमान शून्य हो गया है| आज की युवा पीढ़ी राष्ट्र की सनातन परंपरा का विस्मरण कर चुकी है| राष्ट्र की सभ्यता ,संस्कृति और राष्ट्रीय महापुरुषो के की स्मृति जन-मानस से विस्मृत हो चुकी है, हमारे देश की परम्परा मे सैकड़ो महापुरुष का अर्विभाव हो चुका है, जिस पर हमे गर्व है, जैसे ,वाराहमिहिर, गुप्त-समुद्र ,धनवंतरी ,बौधायान ,आर्य भट्ट, शालिहोत्र, सुश्रुत ,चार्वाक, पतंजलि, कणाद, अश्विनी कुमार जैसे  महान प्राचीन वैज्ञानिक और विचारक थे | कहा जाता है की जब विश्व मे सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का विश्व के ग्लोब में नामोनिशान तक नहीं था ,उस काल मे भारत मे छ्ह विश्वविधालय चला करते थे| उज्जैन ,काशी,वाराणसी ,तक्षशिला ,नालंदा ,विक्रम-शीला आदि, इनमे से दो प्राचीन विश्वविधालाय तो विहार मे ही अवस्थित है ,प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेंसांग, और फ़ाहियान, स्वयम इन विश्वविधाल्यों के शिक्षार्थी रह चुके थे| विहार स्थित नालंदा विश्वविघालय को विध्वंशक एवं आक्रांता वखतियार खिलजी ने मात्र 16 घुडसवारों के साथ इस महान विरासत और ज्ञान केंद्र मे आग लगा दिया और राष्ट्रियता के अभाव मे वह छ्ह माह तक लगातार जलता रहा| आज यह विहार का प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र है| इस लिए भारत को विश्व गुरु के पद से शुशोभित किया जाता था| आज स्थिति इसके ठीक बिपरित है, आज हमारे विद्यार्थी ”ज्ञानम देहीम, भिक्षाम देहिम” की रट लगा कर बिदेशों से प्राप्त डिग्री को ग्रहण कर अपना अहोभाग्य समझते है|
मैं यहा 2/3 भारत के महान और प्रेरक महापुरुषो  की चर्चा करना चाहुंगा | इनके उत्तम चरित्र हमारे लिए कितना प्रेरणा दायक है | यह बताने की अवश्यकता नही| महाराणा प्रताप एक बार युद्ध भूमि मेँ विश्राम कर रहे थे ,तभी उनके वीर पुत्र अमर सिह ने आकर सूचना दी कि एक महिला की डोली विजित कर लाया गया है, और वे महाराणा की आज्ञा चाहते है | राणा प्रताप ने उक्त महिला से परिचय पूछा ,तब पता चला की वे इतिहास प्रसिद्ध योद्धा और कवि अबदुल रहीम खानखाना कि बेगम थी ,जिसे सैनिक उठा कर लाये थे | वे अकबर  के नौ रत्नो मे से एक थे | राणा प्रताप ने उन्हे बाईज्ज्त वापस जनानखाने मे पहुचाने की आज्ञा दी और इतिहास साक्षी है की खांनखाना ने कभी युद्ध भूमी मे राणा प्रताप के सामनें आने की कोशिश नही की और वे आजीवन उनके कृतज्ञ बने रहे| राणा प्रताप के विषय मे दिनकर जी ने लिखा है की, “सूख रही है बोटी–बोटी ,मिलती नहीं घास की रोटी ,गढ़ते है इतिहास देश का,सह कर कठिन क्षुदधा की मार । नमन उन्हे म्रेरा शत बार -2 |           ‘
डॉ0 अजय नन्दन “अजेय ,
डॉ0 अजय नन्दन “अजेय , 
 अन्य एतिहासिक धटना महाराष्ट्र प्रांत से संबंधित है| वीर शिवा जी के मराठे सैनिक एक बार ने एक पालकी ले कर आए और महाराज को बताया गया की यह कल्याण के सुबेदार की खूबसुरत युवा पत्नी की पालकी थी| छ्त्रपति शिवा जी ने उसे बाहर आने का आदेश दिया | वह अनिन्ध सुंदरी कापती हुयी पालकी से आकर बाहर खड़ी हो गई | शिवा जी एक पल उसे देखते रहे और सहसा उनके मुख से जो वाक्यांश निकला वह इतिहास मे कालजयी वाक्यांश हो गया | उन्होने कहा की वाह| कैसी बेमिशाल सुंदरता | “काश की मेरी माता भी इतनी खूबसूरत होतो तो मैं कितना खूबसूरत होता ?” और उनहोने उसे पूरे सम्मान के साथ वापस भेजने का आदेश दे दिया | यह है हमारे महापुरुषों का महान चरित्र का चित्रण | इसी शिवा जी के परम शिष्य और मित्र और वीर राजा थे- बुंदेलखंड के राजा छ्त्रसाल | दोनों ने मिल कर अंतिम मुगल साम्राठ औरंगजेब  के दाट खट्टे कर दिए थे | वह शिवा जी को चिढ़ से “पहाड़ी चूहा” संबोधित करता था| वीर-रस के प्रसिद्ध कवि भूषण ने दोनों को समान महत्व देते हुये लिखा है की “शिवा को सराहों कि सराहो छत्रसाल को” | राजा छत्रसाल अपने घोड़े से अपने राज्य का मुआइना कर रहे थे, कि अचानक एक युवती ने घोड़े की लगाम पकड़ ली और कहा, महाराज आप तो बड़े पराकर्मी और दानवीर भी है, मुझे भी एक दान चाहिए | राजा ने कहा-“मांगो क्या मांगती हो”? उसने कहा “,मुझे आपके जैसा वीर और पराक्रर्मी पुत्र चाहिए” | राजा और उपस्थित सारी प्रजा इस मांग को सुनकर अवाक रह गई | राजा ने एक पल विचार किया और  अपने घोड़े से नीचे उतरे तथा अपना मुकट उस महिला के चरणो मे रख कर कहा “,लो माता | मै ही तुम्हारा वह पुत्र हू | मुझे पुत्र रुप में स्वीकार करो|” अब उस युवती को उन्हे पुत्र स्वीकार करना हीं पड़ा |
यह है हमारे देश की महान औए प्राचीन संस्कृति | वेदो मे कहा गया है की “यत्र नारयस्तू पुजयनते ,रम्यनते तत्र देवता “अर्थात जहाँ महिलाओ की पूजा होती है, वहा देवताओ का निवास होता है| हमारे यहा अपनी पत्नी को छोड कर शेष सभी नारियो को माता या बहन के रूप मे देखने की परंपरा है, जब की पाश्चात्य जीवन दर्शन मे अपनी माता को छोड कर शेष सभी महिला को पत्नी के रूप मे देखने की परंपरा है | यही हमारे और उनके जीवन-दर्शन और दृष्टि मे फर्क है|
रामायण मे बर्णित है, की लंका विजय के पश्चात्त लक्ष्मण ने कहा कि, “यह तो सोने की लंका है ,क्यो न हम लोग यही बस जाये ?” तब मर्यादा पुरषोतम श्री राम ने कहा की, “अपि स्वर्ण मयी लंका न मे लक्षमण रोचते ,जननी, जन्म-भूमिश्च स्वर्गादापि गरियसि”| अर्थात हे, लक्ष्मण, भले लंका सोने की क्यो न हो पर जननी (जन्मदात्री माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से ज्यादा कल्याण-कारी होती है | इस प्रकार भारत वासियो के अन्त:करण मे नारियो का सम्मान करने का संसकार बालपन से ही मे ही मिलता है | यहा निर्जीव गंगा को भी माता,गाय को भी माता तथा अपनी धरती को भी माता कहने की महान परंपरा है| कहा गया है कि “माता भूमि,पुत्रोहम पृथीव्या”,नमो मात्रे प्रिथीव्या,नमो मात्रे प्रीथिव्या | पवित्र भूमि भारत की महान बिरासत पर प्रत्येक भारतवासिओ को गर्व होना चाहिए|
                       –  डॉ0 अजय नन्दन “अजेय , राँची -834001
                          मो0 -09419253485

You May Also Like