ये हर पल रखो ध्यान कि वो दाढ़ी हटवा ना दे

ये हर पल रखो ध्यान कि वो दाढ़ी हटवा ना दे

ये हर पल रखो ध्यान कि वो दाढ़ी हटवा ना दे,
इंसानियत की बात करे क़ुफ्र का फतवा ना दे।

खून पसीना एक करके सींचा है वतन के लिए,
लहलहाती फसलों में कोई ट्रेक्टर चलवा ना दे।

ये हर पल रखो ध्यान कि वो दाढ़ी हटवा ना दे

मुश्किल से गिरी है टूट कर, दुश्मनी की दीवार,
सियासत की हिफाज़त में वो दंगा करवा ना दे।

तुम पहरेदारी रखियेगा उसके मन की बात पर,
खुशबू की महफ़िल वो नफ़रत से भरवा ना दे।

उसकी फितरत के पंख कुछ इस तरह कतरिए,
वो मुल्क़ को भूख और अपनों को हलवा ना दे।

मैं सच को कभी सच कहने से डरता नहीं मगर,
हाकिम है बे-सैक्यूलर मुझे जेल में डलवा ना दे।

नज़र गढ़ा कर रखिए उसकी कारगुज़ारियों पर,
वो वहशी झूठ को सच के सांचे में ढलवा ना दे।

होने लगा उसे अपनी हार का अहसास लेकिन,
ये डर है कि कहीं मुल्क के चुनाव टलवा ना दे।

ज़फ़र सुबह अगर हुई तो बच जाएंगे परिंदे सब,
वो रात की चादर को थोड़ा-सा भी बढ़वा ना दे।


– ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

एफ़-413,

कड़कड़डूमा कोर्ट,दिल्ली-32

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