जीता रहूँगा

जीता रहूँगा

क्या हुआ सब जा चुके है।
बच्चे अपना घर बना चुके हैं।
बुढ़ापा
जीवन के इस सफर में।
अकेला हूँ अपने घर मे।
जीवन के इस उपवन में
खिलता रहूंगा खिलता रहूँगा।
जीवन मे सब कुछ पाया।
छोड़ कर सब मोह माया।
अपने अनुभवों की कीमत
नही रखूंगा खुद तक सीमित।
मानवता के हितार्थ काम
करता रहूंगा करता रहूंगा।
सांसों की गिनती कम हो रही है।
मृत्यु जीवन की ओर बढ़ रही है।
सभी अपने पराये से लग रहे हैं।
दिन में सोए पल रात में जग रहे हैं।
जितने भी पल बचे हैं जिंदगी के।
जीता रहूँगा जीता रहूँगा।
बुढापा नैराश्य का पर्याय नही है
जीवन इतना असहाय नही है।
माना कि तन मजबूर है।
माना कि मंजिल दूर है।
फिर भी बिना किसी के सहारे
चलता रहूंगा चलता रहूंगा।
हे ईश्वर बोझ न बनूँ किसी पर।
रहूं अपने सहारे इस जमीं पर।
किंचित अभिमान न रहे मन में।
स्वाभिमान जिंदा रहे इस तन में।
अंतिम समय ये मुख तेरा ही नाम
रटता रहे रटता रहे।


यह रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाध‍ि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य  वेबसाइटो पर एवं विभ‍िन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश‍ित हो चुकी हैं।आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-
 1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान “द्रोणाचार्य “सम्मान  2012
 2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
 3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
 4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज  के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |

You May Also Like