कबीर का समाज दर्शन

                 कबीर का समाजदर्शन
कबीरदास
संसाररूपी सागर अनंतरूपी रत्नों से भरा हुआ है | भारतभूमि तो रत्नों की खाण ही रही है‍ उन्हीं महान रत्नों में से एक थे संत कबीर | वे भक्त और कवि बाद में थे,पहले समाजसुधारक थे | वे सत्य के अन्वेषक और धर्म के विश्लेषक थे | वे सिकंदर  लोदी के समकालीन थे | कबीर का अर्थ अरबी भाषा में ‘महान’ होता है|  कबीर सधुक्कड़ी भाषा में किसी भी संप्रदाय और रूढियों तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया | हिंदी साहित्य में कबीर का, व्यक्तित्व अनुपम है  उन्होंने ऊँच – नीच तथा जाँति – पाँति के भेदों का विरोध किया | समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों, रूढियों पर जमकर प्रहार किया है | कबीर को शांतीमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा,सत्य,सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे | उस समय हिन्दू जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था | कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से विकसित किया |जिससे सभी क्षेत्रों में फैली हुई सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया| उनके साहित्य में समाजसुधार की जो भावना मिलती है उसे इसप्रकार देख सकते है-  
 धार्मिक पाखंड का खंडन :-
कबीर धार्मिक पाखंड का विरोध करते हुए कहते है कि ,भगवान को पाने के लिए मन से पवित्र होना आवश्यक है | भगवन न मंदिर में है ,न मस्ज्जिद में है ,ना वह गिरिजाघर में है | वह तो हर मनुष्य में है |
‘माला फेरत जुग गया ,गया न मन का फेर ,
      कर का मनका डारि के मन का मनका फेर |’
२     ‘काकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय ,
               ता चढ़ी मुल्ला बाग दे,क्या बहिरा हुआ खुदाय ’
३    ‘पाथर पूंजे हरि मिले, तो में पूंजू पहाड़ ,
                 घर की चाकी कोई न पूंजे,पिसी खाई संसार’ |
हिंसा का विरोध  :-
कबीर हिंसा का विरोध करते है | प्राणिमात्रों को  मारकर उन्हें खाना कबीर को पसंद नहीं | वे कहते है कि,
  ‘बकरी पाती खात है ,ताकी काढी खाल,
         जे नर बकरी खात है ,तिनको कौन हवाल ‘|
अहंकार का त्याग :-

कबीर के अनुसार ,जिसमें प्रेम, दया,करुणा है वही सबसे बड़ा पंडित है | किताबी ज्ञान रखनेवाला सच्चा  पंडित नहीं हो सकता | वे कहते है कि,मनुष्यको कभी गर्व नहीं करना चाहिए | कभी भी दूसरों पर हँसना नहीं चाहिए | यह मनुष्य जन्म एक बार ही मिलता है | वे कहते है कि,
१    ‘पोथी पढ़ी–पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय ,
        ढाई आखर प्रेम का पढ़े , सो पंडित होई ’|
२   ‘ कबीरा गरब न कीजिये ,कबहू न हंसिये कोय,
           अबहू नाव समुद्र में , का जाने का होय |
        ३    ‘ पानी केरा बुदबुदा , अस मानस की जात ,
            एक दिन छिप जात है ,जों तारा प्रभात |  
जाँति-पाँति का विरोध :-
कबीर जाँति-पाँति,उँच-नीच को नहीं मानते | वे ज्ञान को महत्वपूर्ण मानते है साथ हि कहते है कि,मनुष्य बड़ा होने से महान नहीं होता ,बल्कि दूसरों के उपयोगी होने से महान बनता है |  
१  ‘जाँति न पूछो साधू की,पूछ लीजिये ज्ञान ,
   मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान ’|
          |            
२    ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआजैसे पेड़ खजूर ,
         पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर ’|
सदाचरण, सत्य  पर बल :-
वे युग के प्रति सचेत थे | सत्य पर बल देते हुए कहते है कि,
‘ साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ,
  जाके ह्रदय साँच है , ताके ह्रदय आप ’|
परोपकार की भावना :-
हमारी संस्कृति में परोपकार का महत्वपूर्ण स्थान है | कबीर कहते है कि, परोपकार का भाव यह है कि, हम दूसरों की भलाई का मार्ग प्रशस्त करें | दूसरों के दुःख को अपना दुःख समझे और वह दुःख दूर करने के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दें | इसी संदर्भ में वे कहते है कि,
                             १  ‘ मर जाँऊ मांगू नहीं ,अपने तन के काज ,
                                  पर स्वारथ के कारणे, मोहि न मांगत लाज’ |
आर. डी. गवारे 
संक्षेप में कह सकते है कि, कबीर एक महान समाजसुधारक थे | उन्होंने अनुभूत सत्य के आधार पर समाज का मार्गदर्शन किया है | कुसंगति, छलकपट, अहंकार, निंदा, जाँतिभेद, धार्मिक पाखण्ड, आदि को त्यागकर ही सच्चा मानव बना जा सकता है | वे आचरण कि शुद्धता पर बल देते है | मानव जीवन बड़ा अनमोल है इसलिए उसका महत्त्व जानकर समय का सदुपयोग करना चाहिए | असहाय प्राणियों को मार कर खाना कबीर  को पसंद नहीं | हिंसा का वे विरोध करते है | | सचमुच, कबीर का सम्पूर्ण साहित्य समाज को सही राह दिखाकर उस पर चलने के लिए प्रेरित करता है |
             

सहा. प्रा. आर. डी. गवारे (मो.९६३७५२५६८०).हिंदी विभाग, अ. र. भा. गरुड़ कला ,वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्याल शेंदुर्नी, ता.जामनेर  जिला. जलगाँव ,महाराष्ट्र-४२४२०४

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