भगवान सबको आवाज देते हैं

भगवान सबको आवाज देते हैं

भगवान सबको आवाज देते हैं एक ठेलेवाला सब्जी बेचता था। जब वह किसी मोहल्ले में जाता तो आवाज लगाता – आलू ले लो ,प्याज ले लो ,भिन्डी ले लो ,कटहल ले लो ,इस तरह वह अपने ठेले पर रखी सब्जियों के नाम लेकर पुकारता था और आवाज भी ऊँची कर देता ताकि जो लोग घर के अन्दर हों ,वे भी सुन सकें ,जिसकों सब्जी लेनी होती ,वे उस आवाज पर विचार करते ,अगर उनको कोई सब्जी चाहिए तो बाहर आते ,देखते ताज़ी सब्जी है ,ठीक है ,फिर वो उससे भाव भी पूछते और मोल भाव करते और सब्जी खरीद लेते।  यह सब्जी वाले का धंधा है ,आवाज देता तभी ग्राहक उसके पास आते हैं। धार्मिक पक्ष यह है कि सब भगवान के पास नहीं आते हैं ,आवाज तो लगभग सबको सुनाई देती है ,मगर कुछ लोग ही आते हैं। 

ध्यान केंद्रित कैसे करें

नीतिकार कहता है कि संसार बोलता है उसको बोलने से आप रोक नहीं सकते हैं। आपको भी कहता है आपके पड़ोस में भी कहता है। उसका काम ही कहना है अगर कोई आपको गुस्से या शिकायतवाली बात कह दे तो भी वह सब्जी वाले के समान की बात है। अगर आप खरीददार नहीं है तो किस बात का गुस्सा है। कई लोग छोटी छोटी बात का गुस्सा कर लेते हैं ,उसने मुझसे यह कहा ,बस पड़ गयी दरार। 
भगवान
भगवान विष्णु 
ये मनुष्य ! तू छोटी छोटी बातों में अगर उलझ गया तो जीवन जीना नरक बन जाएगा। समझदार व्यक्ति तो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता रहता है। कई लोग लोग तो कुछ मार भी देते हैं ,मारने वाले जरुरी नहीं पागल ही हों ,मगर वे पागल ही कहलाते हैं। इसीलिए कोई क्या कह रहा है ,क्या बेच रहा है ,इन सब पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए ,सब की ओर ध्यान करोगे तो दिक्कत आ सकती है। सीधा मंजिल की तरफ ध्यान रखना चाहिए ,वह ही ठीक रास्ता है। 

मित्रता की वजह 

लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ यह देखो कि जो करने योग्य था ,वह बन पड़ा या नहीं। एक बार की बात है कि दादा की उम्र साठ साल के आस – पास होती है और पोता तकरीबन आठ साल का होता है। यह मेल क्यों होता है ,आप समझ सकते हैं। एक संसार में नया आया होता है ,एक जाने वाला होता है ,दोनों की मित्रता होना स्वाभाविक है। एक कहावत है – साठे और आठे का मेल।एक कहावत को सीधे तरीके से कहा जाए। अधिकतर घर में यह देखा गया है कि दादा जी अपने पोते को बहुत प्यार करते हैं और पोता भी अपने दादा जी के साथ ज्यादा खेलना चाहता है। इसे अगल तरीके से कहा जाए तो ,जैसे कोई मुम्बई शहर से आया है और एक को उसे शहर में जाना है। मुम्बई में क्या है ? वह कैसा शहर है ? यह जानने और बताने की इच्छा दोनों में होती है। मित्रता की यही वजह है। दादाजी अपने जीवन में संसार देख चुके होते हैं और पोते को देखने और जानने की इच्छा रहती है ,जबकि दादा को बताने की उत्सुकता होती है। इसीलिए कहते हैं – साठे आठे का मेल। 

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