सूर के पद Surdas ke Pad

सूर के पद Surdas ke Pad

१. जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
व्याख्या – प्रस्तुतपद में महाकवि सूरदास जी ने कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया है। श्री कृष्ण को पालने में रख कर वे कभी पालने को हिलाती हैं , कभी पालने में पड़ें श्रीकृष्ण को प्यार करती हैं तो कभी उन्हें लोरियाँ सुनाती हैं,ताकि बालक को नींद आ जाए। माँ यशोदा नींद को उलाहना देते हुए कहती हैं कि, हे निंदिया , मेरे लाल को आकर क्यों नहीं सुलाती हो ? तुम क्यों नहीं जल्दी आती हो , मेरा कान्हा तुम्हें कब से बुला रहा है। कभी कान्हा अपनी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी कुछ बुदबुदाते हैं। यशोदा मैया उन्हें सोता जानकर , वहाँ उपस्थित सभी को इशारे से चुप रहने को कहती है। इसी बीच कॄष्ण बेचैन होकर उठ जाते हैं और यशोदा मैया पुनः उन्हें मधुर गीत गाकर सुलाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि  कृष्ण की इस बाल लीला का सुख, जो देवताओं और सिद्‍ध मुनियों को भी दुर्लभ होता है, नंद की पत्नी को यह सुख अनायास ही प्राप्त हो रहा था। 
२. खीझत जात माखन खात।
अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥
कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात।
कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥
कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा निमिस तजत न मात॥
व्याख्या – प्रस्तुत पद में महाकवि सूरदास जी ने कृष्ण की बाल रूप का वर्णन किया है। यशोदा माता भगवान कृष्ण को माखन खिला रही हैं। कृष्ण जी चिढ़ते हुए और मचलते हुए माखन खा रहे हैं क्योंकि उन्हें नींद आ रही थी। नींद के कारण उनकी आँखें लाल और भौंहें टेढ़ी हो रही थीं। वे बार-बार जम्हाई ले रहे थे। कभी वह घुटनों के बल चलते हैं और उनके पैरों की पैंजनी के घँघरू झन-झन करते हुए बजने लगते हैं। पूरा शरीर धूल में सना हुआ है। कभी वे झुककर गुस्से से अपने ही बाल खींचने लगते हैं, जिससे उनकी आँखों में पानी भर आता है। कभी वे चिढ़कर अपनी तोतली भाषा में कुछ बोलते हैं तो कभी माता यशोदा से छुटकारा पाने के लिए अपने पिता को बुलाते हैं। सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से मुग्ध हो जाती हैं और एक क्षण के लिए भी कृष्ण से अलग नहीं होना चाहती हैं।
३. मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं ।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं ॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं ।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं ॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं ।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं ॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं ॥
सूरदास ह्वै सखा  बराती, गीत सुमंगल गैहौं ॥

व्याख्या – प्रस्तुत पद में बालक कृष्ण की बाल लीलाओं का बड़ा ही यथार्थ वर्णन कवि ने किया है।चंद्रमा को खिलौने के प में पाने के लिए कृष्ण मचल गए हैं। वे कहते हैं कि अगर उन्हें चाँद न मिला तो वे सफ़ेद गाय का दूध न पीएँगे और अपनी चोटी भी नहीं बँधवाएँगे। यही नहीं, वे यह भी कहते हैं कि न मोतियों की माला गले में डालेंगे और न वस्त्र पहनेंगे, माँ की गोद में नहीं आएँगे और धूल में लोटेंगे। यशोदा को धमकाते हुए उनका यह भी कहना हैं कि अब से वे माँ के नही, बल्कि नंद बाबा के पुत्र कहलाएँगे। ऐसी प्यारी-प्यारी बातें सुनकर यशोदा उन्हें मनाते हुए कान में कहती हैं कि वे कृष्ण के लिए चाँद से भी सुंदर दुल्हनिया लाएँगी और यह बात बलराम को पता न चले। अपने विवाह की बात सुनकर कृष्ण की खुशी का ठिकाना न रहा। वे माँ को सौगंध देकर कहते हैं कि जल्दी से उनकी शादी करा दी जाए। सूरदास कहते हैं कि कृष्ण के ब्याह में उनके इष्ट-मित्र बाराती के रूप में जाएँगे और सारे मिलकर मंगल गीत गाएँगे।
इस प्रकार कवि ने भगवान् श्रीकृष्ण के बाल रूप का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।

सूर के पद का केन्द्रीय भाव / मूल भाव 

सूर के पद नामक कविता में महाकवि सूरदास जी ने पहले पद में श्रीकृष्ण के बाल रूप एवं माता यशोदा के पुत्र प्रेम का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है . माता कभी श्रीकृष्ण को सुलाने का काम करती हैं . श्रीकृष्ण को पालने में रखकर कभी हिलाती हैं तो कभी उन्हें लोरियाँ सुनाती हैं ताकि कृष्ण को नींद आ जाए . कृष्ण कभी अपनी आँखें को बंद कर लेते हैं तो कभी वे अपने होंठ हिलाते हैं . 

दूसरे पद में श्रीकृष्ण के बाल रूप का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है . कभी वे घुटनों के बल चलते है तो उनके पैरों से पायलों की रुन-झुन की आवाज निकलती है जो अत्यंत मनमोहक है . घुटनों के बल चलने के कारण श्रीकृष्ण धूल से भर जाते हैं . 
तीसरे पद में भगवान् श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं का मनोहारी वर्णन किया गया है . श्रीकृष्ण चंद्रमा को खिलौना समझ कर उसे पाने की जिद करते हैं . खिलौना  नहीं मिलने की हालत में वे अपनी माता से कहते है जब तक उन्हें खिलौना मिल नहीं जाता है तब तक वे न तो कुछ खाए पियेंगे न ही अपना बाल बंधवाएँगे न  ही माला पहनेंगे और न ही कोई आभूषण धारण करेंगे . माता उन्हें बहलाने का प्रयास करती हैं कि वे उनका ब्याह चाँद से भी सुन्दर नयी दुल्हन से करवा देंगी . तो कृष्ण कहते है कि माता अभी तुरंत ही ब्याह करने जाऊँगा .

प्रश्न उत्तर 

प्र. १. यशोदा माता नींद से क्या शिकायत करती हैं ?
उ – माता यशोदा नींद से शिकायत कर रही हैं कि नींद तू जल्दी से आ कर मेरे लाल को क्यों नहीं सुलाती हो ? तुम जल्दी से आओ . तुम्हे कृष्ण बुला रहे हैं . 
प्र.२. पालने में सोते हुए श्रीकृष्ण क्या क्या क्रियाएँ कर रहे हैं ?
उ. पालने में सोते हुए श्रीकृष्ण कभी आँख मूँद लेते हैं तो कभी आँख खोल लेते हैं ,कभी अपने होंठो को हिलाते हैं तो कभी चौंक कर जाग जाते हैं . 
प्र. ३. कवि से किस सुख को दुर्लभ बताया हैं ?
उ . कवि सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा को बाल कृष्ण की विविध क्रिया कलापों को देखकर जो वात्सल्य सुख प्राप्त  हो रहा उसे देवताओं ,मुनियों को भी प्राप्त करना दुर्लभ है . 
प्र. ४. बालक श्रीकृष्ण किस बात की जिद कर रहे हैं ?
उ – बालक श्रीकृष्ण चाँद को खिलौना समझ कर उसे पाने या लेने की जिद कर रहे हैं . 
प्र.५.  माता यशोदा बालक श्रीकृष्ण को क्या कहकर मनाती हैं ?

उ – माता , कृष्ण के कान में यह कहती हैं कि उसका विवाह वे चाँद से भी सुंदर दुल्हन से कराएँगी और वह यह बात बलराम को न बताए। इस तरह कृष्ण मान जाते हैं।

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