14 सितम्बर हिंदी दिवस

14 सितम्बर हिंदी दिवस

14 सितम्बर को हम भारतीय अपनी प्रिय भाषा हिन्दी का संवैधानिक जन्मदिन मनाते हैं। स्वतंत्रता के पूर्व चाहे
14 सितम्बर

साम्यवादी रहे हों, समाजवादी रहे हों, उदारवादी या नवउदारवादी रहे हों, कम से कम हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप में अपनाने के लिए इन सभी की सोच लगभग एक ही थी। भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने और देश की एकता व अस्मिता की रक्षा के लिए हिंदी को ही सर्वसम्मति से राष्ट्र की संपर्क भाषा माना गया था। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां इस बात को प्रमाणित करती हैं कि “है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी”।

स्वंत्रता के पश्चात संघ सरकार के राजकाज के कार्य तथा केंद्र एवं राज्यों के बीच संपर्क भाषा की भूमिका निभाने का उत्तरदायित्व हिन्दी को ही सौंपा गया, क्योंकि इसे देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हैं तथा यह भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है। हिन्दी भाषा द्वारा देश की राष्ट्रीयता को अक्षुण्ण बनाए रखने के उद्देश्य से भारत के संविधान में उसे 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा घोषित किया गया और यह दिन बन गया हिन्दी का संवैधानिक जन्मदिवस।
भारतीय संविधान में भाग-5, भाग-6 एवं भाग-17 में राजभाषा हिन्दी के विषय में व्यवस्था की गई हैं। भाग-5, में संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा के बारे में, भाग-6 में विधान मंडल की भाषा के बारे में तथा भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 में राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रयोग के बारे में व्यवस्था की गई है। संविधान में विशेष रुप से अनुच्छेद 351 में यह प्रावधान है कि हिंदी भाषा के प्रसार व विकास हेतु कर्तव्यनिष्ठ होकर भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी को बनाते हुए उसके शब्द भंडार को अधिकाधिक समृद्ध और संवर्धित करने का कार्य किया जाए। 
संघ की राजभाषा घोषित किए जाने के बाद सन् 1950 में हिन्दी के माध्यम से प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए सर्वप्रथम जो महत्वपूर्ण कार्य किए गए, उनमें प्रशासनिक, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं विधि -शब्दावली का निर्माण, प्रशासनिक एवं विधि-साहित्य का हिन्दी में अनुवाद, अहिन्दी भाषी सरकारी कर्मचारियों का हिन्दी प्रशिक्षण और हिन्दी टाइपराइटरों एवं अन्य साधनों की व्यवस्था आदि शामिल थे। इस तरह राजभाषा बनने के बाद हिन्दी साहित्य की परिधियों को तोड़कर प्रशासन, जनसंचार, विधि, विज्ञान, वाणिज्य और भी जाने कितने अनगिनत विषयों की भाषा बन गई।
हिन्दी के प्रयोजनमूलक विस्तार ने उसके शब्दभण्डार में भी श्रीवृद्धि शुरु कर दी। हिन्दी में नई नई शब्दावलियों का विकास हुआ और विकास का यह क्रम आज तक भी जारी है। विकसित शब्दावलियों को ही राजभाषा हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली नाम दिया गया है। पारिभाषिक शब्द निर्माण में भाषा विशेष की ग्राह्यता, संचयन एवम् अनुकूलन अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। पारिभाषिक शब्दावली में राजभाषा के निर्मित शब्दों में परम्परा, परिस्थिति और प्रयोग को ध्यानगत रखते हुए ऐसे शब्द बनाए गए, जिनके अर्थ भी जीवित बने रहे और साथ ही विशिष्ट विषय अथवा सिद्धान्त के सम्प्रेषण के लिए उनका तकनीकी सामंजस्य भी बना रहा। यही कारण है कि हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली को तकनीकी शब्दावली के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दी के इस राजभाषा स्वरुप के उत्तरदायित्व को निभाने में शुरु से ही भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अन्तर्गत ही 1950 में सरल हिन्दी तकनीकी शब्दावलियों के निर्माण हेतु शिक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में एक वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड गठित किया था, जिसके तत्त्वावधान में 1952 में हिन्दी शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया था। इसके बाद भारत सरकार द्वारा 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और 1961 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई। तब से अब तक केंद्रीय हिन्दी निदेशालय तथा वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग दोनों ने मिलकर विज्ञान, मानविकी, आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, कृषि तथा प्रशासन आदि के लगभग 4 लाख अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्दों के हिन्दी पर्याय प्रकाशित कर दिए हैं। इसी प्रकार राजभाषा (विधायी आयोग) तथा राजभाषा खंड ने विधि शब्दावली का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया है।
वर्ष 1971 में गृह मंत्रालय के अधीन केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो बनाया गया, जो इस समय भी भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्यालयों/उपक्रमों आदि के मैनुअलों का भी हिन्दी अनुवाद करता आ रहा है। राजभाषा हिन्दी के प्रचालन के लिए वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के विकास हेतु समन्वयवादी दृष्टिकोणों के तहत शब्दावली में ‘पारिभाषिक हिन्दी शब्दों’ का निर्माण, उसकी समीक्षा एवं समन्वयन के लिए भारत की सामसिक संस्कृति, भाषायी विविधता, राष्ट्रीय एकता तथा अस्मिता को सुरक्षित रख पाने में सक्षम महत्वपूर्ण सिद्धांतों का निरूपण किया गया है। इससे ऐसी वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली विकसित हुई है, जिसने ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं की आधुनिक तथा आधुनिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन शब्दावलियों  के निर्माण के समय उनके लोकव्यापीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। 
राजभाषा हिन्दी की 18 शब्दावलियाँ प्रकाशित की जा चुकी हैं, जिसमें 20,000 शब्दों को विषयवार संकलित कर उनको अखिल भारतीय शब्दावली के रूप में स्वीकार किया किया गया है। अब तक कुल लगभग 35 शब्द-संग्रह/शब्दावलियाँ छापी जा चुकी हैं, जिनमें अर्थशास्त्र और वाणिज्य, आयुर्विज्ञान (शल्य विज्ञान), खगोलिकी, गणित, जीवविज्ञान, प्राणिविज्ञान, प्रायोगिक भूगोल, भाषाविज्ञान, भूगोल, भूविज्ञान, भौतिकी, मानव भूगोल, रसायन विज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, शिक्षा, मनोविज्ञान तथा मनोरोग विज्ञान, समाजविज्ञान एवं सांस्कृतिक नृविज्ञान, समुद्रविज्ञान, सांख्यिकी एवम् सिविल इंजीनियरी इत्यादि विषयों के कुल मिलाकर लगभग 8.5 लाख तकनीकी शब्दों के हिंदी पर्याय दिए गए हैं। ज्ञान-विज्ञान की लगभग सभी आधुनिकतम शाखाओं की अधिकांश शब्दावलियों के हिंदी पर्याय बन चुके हैं। 
शब्दावलियों के प्रस्तुतीकरण एवं प्रकाशन की प्रक्रिया का आधुनिकीकरण करने के लिए कप्यूटरीकृत राष्ट्रीय शब्दावली बैंक तथा वेबसाइट http://www.cstt.nic.in/ भी है। वर्तमान में वैज्ञानिक एवं तकनीकी पारिभाषिक शब्दावली का हिन्दी में कोई अभाव नहीं है। राजभाषा संवैधानिक जन्मदिनों के उपहारों के रुप में तकनीकी शब्दावलियों ने हिन्दी को बेहद सम्बृद्ध किया है। मूल तकनीकी संकल्पना की सूचना अनूदित भाषा में संप्रेक्षित कर विकसित की गईं हिन्दी तकनीकी शब्दावलियों की भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक एवम् अकादमिक-बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शब्दावलियों के ये मानक शब्द भारतीयता की वास्तविक और व्यापक अवधारणा की न केवल समझ विकसित करते हैं, वरन् इन्होंने अपने सफल प्रयासों से उसको पुष्पित-पल्लवित भी किया है। तकनीकी शब्दावलियों को हिन्दी के प्रयोजनीय पक्ष के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि इनकी सहायता से प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दी में कार्य करना संभव हो सका है। अभी भी सभी विषयों की शब्दावलियों में संशोधन, परिवर्धन एवं अद्यतनीकरण निरंतर होता रहता है। हिन्दी के हर साल आने वाले संवैधानिक जन्मदिवस पर शब्दों का यह भण्डार उसके लिए सबसे कीमती उपहार होता है।
– डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा

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