गांधी होना आसान नहीं

गांधी होना आसान नहीं
(गांधी जयंती पर विशेष लेख)

गांधी जी की एक गाल पर चांटा मारने वाले को अपना दूसरा गाल दिखाने की अवधारणा रही हो या कान, आंख और मुंह बंद किए हुए तीन बंदरों के माध्यम से दी गईं उनकी प्रतीकात्मक सीखें रही हों, इनसे सभी भलीभांति परिचित हैं, लेकिन उन पर चलना बेहद कठिन है, क्योंकि गांधी होना आसान नहीं है। इसलिए तो एक बार महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंसटीन ने कहा था कि “आने वाली पीढ़ियों को यह यकीन ही नहीं होगा कि महात्मा गांधी जी जैसा भी कोई व्यक्ति इस धरती पर आया था।”
महात्मा गांधी के आदर्शों, विश्वासों एवं जीवन दर्शन की सम्पूर्ण विचारधारा के विस्तृत स्वरुप को गांधी दर्शन की संज्ञा दी गई है। वास्तव में गांधी दर्शन स्वयं गांधीजी द्वारा अपने जीवन में किए गए विविध प्रयोगों की अनुभूति के मौखिक और लिखित नैतिकता से परिपूर्ण भाष्य हैं। गांधी दर्शन के दो महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ सत्य और अहिंसा हैं। गांधी दर्शन के अनुसार सत्य ही ईश्वर है और ब्रह्माण्ड का समग्र ज्ञान सम्पूर्ण सत्य में ही समाहित है। 
जीवन का परिशुद्ध सत्य ही मनुष्य को उसकी अंतरात्मा की आवाज सुनने और समझने की शक्ति प्रदान करता है। गांधी की दृष्टि में सत्य सर्वश्रेष्ठ धर्म और अहिंसा परम कर्तव्य है। गांधीदर्शन के अनुसार अहिंसा किसी को भी तन, मन, धन, कर्म, वचन और वाणी से तनिक भी हानि न पहुँचाने का संकल्प है। ‘युद्ध और अहिंसा’ नामक गांधी की पुस्तक में उन्होंने अहिंसा को सक्रिय शक्ति और सार्वभौम नियम के रुप में निरुपित किया है। 
महात्मा गांधी
महात्मा गांधी
हांलाकि गांधी स्वयं भी इस बात को स्वीकार करते थे कि वे जिस सत्य और अहिंसा की बात दुनिया के सामने करते हैं, वे कोई उनकी गढ़ी अवधारणाएं नहीं हैं, बल्कि वे तो दुनिया की उत्पत्ति के साथ जन्मी प्राचीनतम जीवन साधनाएं हैं। वे तो बस वर्तमान संदर्भ में उनका प्रयोग सत्य का साध्य के रुप में और अंहिसा का साधन के रुप में कर रहे हैं। गांधी दर्शन के अनुसार अहिंसात्मक मार्ग पर चलते हुए जीवन में सत्य की प्राप्ति सुनिश्चित है। अपनी इसी सुदृढ़ विचारधारा के बल पर गांधी ने तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के निर्ममता और अत्याचार रुपी अहिंसात्मक वातावरण में भी भारत के सामाजिक और चारित्रिक उत्थान हेतु सांप्रदायिक एकता, हरिजनोद्धार, मद्यपान निषेध, नदी उद्धार, आदि कई समाज उद्धारक कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करवाया। गांधी दर्शन में स्वराज, मातृभाषा, बुनियादी शिक्षा, आत्मशासन और आत्मसंयम, स्वाबलंबन, राष्ट्रीय चेतना, स्वच्छता, सत्याग्रह, सर्वोदय, विश्वबंधुत्व, शांति, समर्पण, सर्वधर्म समभाव, मानवता जैसे अनेक आदर्श समाहित हैं। इस तरह गांधी दर्शन ने भारत में केवल राजनितिक ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों को प्रभावित किया है। 
गांधी दर्शन का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई देता रहा है। चाहे वे नेल्सन मंडेला रहे हों या फिर दलाई लामा, मिखाइल गोर्बाचोव, अल्बर्ट श्वाइत्ज़र, मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर किंग (जूनियर), आंग सान सू की, पोलैंड के लेख वालेसा, बराक ओबामा रहे हों, इन सभी महान विभूतियों गांधी दर्शन के सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए सिर्फ अहिंसा के बल पर अपने-अपने क्षेत्रों और देशों में नव समाज का सृजन किया। भारत में भी आम नागरिक हों या फिर महान विचारक हों, सभी ने अपने अपने ढंग से गांधी दर्शन को अपनी निजी दिनचर्या, अपनी सोच, चिंतन, मनन और यहां तक कि नवसृजन में अपनाते हुए विश्व स्तर पर देश की स्वातन्त्र्य, समता तथा विश्वबंधुत्व की छवि को जीवंत बनाए रखा है। 
आज भी गांधी दर्शन के सत्य, अहिंसा, विश्वबंधुत्व, शांति, समर्पण, सर्वधर्म समभाव, मानवता आदि आदर्शों के सिद्धांत विश्व में प्रासंगिक बने हुए हैं, क्योंकि गांधी दर्शन कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता। गांधी बनना भले ही कठिन है, परंतु यदि एक बार प्रयास किया जाए तो उनके बताए मार्गों पर चलने की दृढ़ इच्छा स्वयं में गांधी होने का अहसास अवश्य करवा सकती है।  


– डॉ. शुभ्रता मिश्रा, गोवा
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