सारनाथ – डॉ. राजकिशोर सिंह

सारनाथ – डॉ. राजकिशोर सिंह

सारनाथ डॉ. राजकिशोर सिंह सारनाथ पाठ का सारांश  सारनाथ पाठ के प्रश्न उत्तर सारनाथ पाठ से संबंधित शब्दार्थ  

सारनाथ पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ सारनाथ , लेखक डॉ. राजकिशोर सिंह जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ में लेखक द्वारा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा पुरातत्व संबंधी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में बात की गई है। प्राचीन स्मारक हमारी सांस्कृतिक धरोहर के अंग माने जाते हैं। इतिहास के इन अमूल्य स्मृति-चिह्नों और श्रेष्ठ कलाकृतियों के सहारे इतिहास पढ़ा और लिखा जा सकता है। ये वीरान खंडहर आज भी हमारे अतीत की कहानी सुनाते हैं। 
इस पाठ के अनुसार, जब गुरु जी कक्षा में आए तो उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए बोला – सबसे पहले हमलोग सारनाथ के विषय में पढेंगे। सारनाथ वाराणसी से चार मील उत्तर की दिशा में स्थित है। यह बौद्धों का पवित्र तीर्थस्थान है। गौतम बुद्ध ने अपना ‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन’ यहीं किया था।  तभी गुरु जी की बात सुनकर पंकज पूछता है – धर्म-चक्र-प्रवर्तन क्या होता है गुरु जी ?  पंकज के सवाल का जवाब देते हुए गुरु जी कहते हैं – गौतम बुद्ध, जिनका नाम सिद्दार्थ था, अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़कर ज्ञान की खोज में घर से निकल पड़े थे। उनके पाँच शिष्य बने। वे पाँचों भी उनके ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग को गलत समझकर उन्हें बोधगया में अकेला छोड़कर भाग गए। फिर तपस्या आदि के बाद जब बुद्ध को ज्ञान-प्राप्ति हुई तब उन्होंने सबसे पहले उन्हीं पाँच शिष्यों को सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म की यह एक महान घटना थी। इसे ही बौद्ध साहित्य में धर्म-चक्र-प्रवर्तन कहते हैं। 
सारनाथ - डॉ. राजकिशोर सिंह

इसके पश्चात् गुरु जी ने बताया कि मौर्य सम्राट अशोक जब बौद्ध धर्म का अनुयायी बना तो उसने सारनाथ में कई स्मारक बनवाए। इनमें अशोक स्तंभ सबसे प्रमुख है। इस स्तंभ का शीर्ष भाग चार सिंहों से युक्त है। चारों शेरों के मुँह एक-दूसरे से विपरीत दिशा में है, पर पीठ आपस में इस तरह सटी है जैसे एक ही हो। इस शीर्ष भाग की ऊँचाई छह फुट से अधिक है। सिंहों के बीच में एक चक्र है, जो धर्म-चक्र का सूचक है। इस चक्र में 32 आरे हैं। सिंहों के नीचे छोटे-छोटे चक्र हैं, जिनकी संख्या 24-24 है। सिंहों की मूँछें, नेत्र, अयाल और खुले हुए मुख अस्वाभाविक होते हुए भी बड़े प्रभावशाली हैं। यहाँ तक कि सिंहों के पैरों के पंजे भी बने हुए हैं।  इतिहासकारों ने सारनाथ की इस सिंह प्रतिमा की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वे इसे कला का उत्तम नमूना मानते हैं। इस स्तंभ के सिंह जंगलों में रहनेवाले साधारण सिंह नहीं हैं। इनमें उच्च भावनाओं के झलक मिलती है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह स्तंभ एक ही पत्थर का बना है और इसमें अत्यंत चमकदार पोलिश की गई है। यह पॉलिश बाद की मूर्तिकला से हमेशा के लिए लुप्त हो गई।  इतने में पंकज अपनी जेब से एक रुपए का सिक्का निकाला और गुरु जी को संबोधित करते हुए पूछा – क्या यही अशोक-स्तंभ के शीर्ष भाग पर बने सिंह का चित्र है ? इसे ही क्या भारत सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अपनाया है ?  गुरु जी जवाब देते हुए कहते हैं – हाँ बेटे, तुमने ठीक समझे है। 

आगे गुरु जी ने बताया कि इस स्तंभ के निचले भाग पर ब्राह्मी लिपि में सम्राट अशोक ने अपना लेख खुदवाया है। न केवल सारनाथ, बल्कि साँची, दिल्ली, कौशांबी, लुंबनी, वैशाली, लौरियानंदनगढ़ आदि स्थानों पर भी अशोक ने अपने स्तंभ बनवाए और उनपर लेख खुदवाए। सारनाथ की प्रसिद्धि धर्म-चक्र-प्रवर्तन और सिंह शीर्षवाले स्तंभ के लिए तो है ही, स्तूपों और विहारों के लिए भी है। यहाँ खुदाई में अनेक स्तूपों और विहारों के खंडहर मिले हैं। सारनाथ का धर्म-चक्र स्तूप गुप्तकाल में बनवाया गया। यह गुप्तकालीन कला का श्रेष्ठतम उदाहरण है। 
इसके अतिरिक्त रेखागणित की विभिन्न आकृतियाँ, स्वस्तिक के चिह्न और लहरें लेता हुआ डंठलयुक्त कमल भी अंकित है। इस शिल्पकारी को देखकर मन प्रसन्न हो उठता है। सारनाथ की प्रसिद्धि का कारण यहाँ मिली दो मूर्तियाँ भी है। पहली कनिष्क के काल की एक विशाल बोधिसत्व प्रतिमा है और दूसरी गुप्तकाल की एक सुंदर धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा में भगवान बुद्ध की मूर्ति है। बुद्ध के दोनों कंधे सुंदर रेशमी महीन वस्त्रों से ढके हैं। बुद्ध के माथे पर चारों ओर प्रभामंडल है। प्रभामंडल के दोनों ओर दो देवी मूर्तियाँ हैं, जो फूलों का पात्र हाथ में लिए हुए हैं। बुद्ध की प्रतिमा की चौकी के बीच में एक धर्म-चक्र तथा उसके दोनों ओर दो हिरन दिखाई देते हैं। मूर्ति के दोनों ओर दो व्याल अपने माथे पर भारी पत्थर लिए हुए हैं। मूर्ति के बाईं ओर एक बालक तथा स्त्री की आकृति है। बुद्ध के चेहरे पर अनुपम शांति, गंभीरता, कांति और अलौकिक सौन्दर्य है।  अंततः गुरु जी की बातें ख़त्म हुई और छुट्टी की घंटी बज गई…।।  

सारनाथ पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1- सारनाथ भारत के किस राज्य में है ?  
उत्तर- सारनाथ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य (वाराणसी) में स्थित है।  
प्रश्न-2- गौतम बुद्ध का सारनाथ से क्या संबंध था ? 
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गौतम बुद्ध ने अपना धर्म-चक्र-प्रवर्तन यहीं पर किया था।  
प्रश्न-3- सारनाथ की दो विशेषताएँ बताइए।  
उत्तर- सारनाथ की प्रसिद्धि धर्म-चक्र-प्रवर्तन और सिंह शीर्षवाले स्तंभ के लिए तो है ही, स्तूपों और विहारों के लिए भी है।  
प्रश्न-4- उचित विकल्प का चयन कीजिए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
बौद्ध धर्म का अनुयायी कौन बना था ? – अशोक 
बौद्धों का सबसे प्रमुख स्मारक कौन-सा है ? – अशोक स्तंभ  
किस मूर्ति की विशेषता बताई जा रही है ? – बोधिसत्व प्रतिमा 
या मूर्ति कहाँ से मिली थी ? – सारनाथ 
इस मूर्ति की अन्य विशेषताएँ क्या हैं ? – तीनों सही हैं 
प्रश्न-5- बौद्ध धर्म की यह एक महान घटना थी – किस घटना की बात की जा रही है ? 
उत्तर- गौतम बुद्ध, जिनका नाम सिद्दार्थ था, अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़कर ज्ञान की खोज में घर से निकल पड़े थे। उनके पाँच शिष्य बने। वे पाँचों भी उनके ज्ञान-प्राप्ति के मार्ग को गलत समझकर उन्हें बोधगया में अकेला छोड़कर भाग गए। फिर तपस्या आदि के बाद जब बुद्ध को ज्ञान-प्राप्ति हुई तब उन्होंने सबसे पहले उन्हीं पाँच शिष्यों को सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म की यह एक महान घटना थी। इसे ही बौद्ध साहित्य में धर्म-चक्र-प्रवर्तन कहते हैं। 
प्रश्न-6- सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का अनुयायी बनने के बाद क्या किया ? 
उत्तर- मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का अनुयायी बनने के बाद सारनाथ में कई स्मारक बनवाए। जिनमें प्रमुख है – अशोक स्तंभ।    
प्रश्न-7- सिंह प्रतिमा की प्रशंसा करते हुए इतिहासकारों ने क्या कहा ? 
उत्तर- इतिहासकारों ने सारनाथ की इस सिंह प्रतिमा की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वे इसे कला का उत्तम नमूना मानते हैं। इस स्तंभ के सिंह जंगलों में रहनेवाले साधारण सिंह नहीं हैं। इनमें उच्च भावनाओं के झलक मिलती है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह स्तंभ एक ही पत्थर का बना है और इसमें अत्यंत चमकदार पोलिश की गई है। यह पॉलिश बाद की मूर्तिकला से हमेशा के लिए लुप्त हो गई।  
प्रश्न-8- अशोक स्तंभ के कौन-से चिह्न किन अलग-अलग रूपों में उपयोग में लाए गए हैं ? 
उत्तर- अशोक-स्तंभ के शीर्ष भाग पर बने सिंह का चित्र भारत सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अपनाया है। उक्त सिंहों का चित्र सरकार द्वारा जारी मुद्रा (सिक्कों एवं नोट) पर अंकित है। अशोक-स्तंभ में ही स्थित अशोक-चक्र तिरंगे झंडे के मध्य में स्थित है। अशोक-स्तंभ में मौजूद सिंहों का चित्र सरकारी प्रपत्रों, मुहरों, टिकटों एवं तीनों सेनाओं के सैनिकों की वर्दी पर अंकित होते हैं।        
व्याकरण-बोध 
प्रश्न-9- दिए गए पदों का विग्रह करके लिखिए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
ज्ञान-प्राप्ति – ज्ञान की प्राप्ति  
धर्म-चक्र – धर्म के लिए चक्र 
वनगमन – वन के लिए गमन 
गुणहीन – गुण से हीन 
पवनपुत्र – पवन का पुत्र  
देशप्रेम – देश के लिए प्रेम 
प्रश्न-10- समस्त पद लिखिए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
परलोक का गमन – परलोकगमन  
गुरु के लिए व्यय – गुरु व्यय 
गंगा का जल – गंगाजल 
अकाल से पीड़ित – अकाल पीड़ित 
ऋण से मुक्त – ऋणमुक्त 
नगर में वास – नगरवास 
प्रश्न-11- द्विकर्मक एवं प्रेरणार्थक क्रियाएँ छाँटकर उनका नाम लिखिए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है – 
अशोक ने अनेक स्तंभ बनवाए। – प्रेरणार्थक क्रियाएँ  
मम्मी ने हमें हलवा खिलाया। – द्विकर्मक क्रियाएँ 
सुरेखा ने रमेश को पत्र लिखा। – द्विकर्मक क्रियाएँ 
मौसी जी ने मालती को फ्रेंच पढ़वाई। – प्रेरणार्थक क्रियाएँ 
अध्यापक छात्रों को निबंध लिखवाते हैं। – प्रेरणार्थक क्रियाएँ   

सारनाथ पाठ से संबंधित शब्दार्थ  

अयाल – शेर की गर्दन के बाल 
अनुयायी – शिष्य, अनुगामी 
भूरि-भूरि – अच्छी तरह, बहुत अधिक 
स्तंभ – खंभा 
ब्राह्मी लिपि – अशोक के समय की लिपि  
स्तूप – शिखर के आकारवाले बौद्ध मंदिर 
ध्वंसावशेष – किसी इमारत के अवशेष 
प्रभामंडल – सिर के चारों ओर बना आभामंडल 
व्याल – बाघ, चीता, शेर 
अनुपम – सुंदर। 

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