कब वह सुन्‌ता है कहानी मेरी – मिर्ज़ा गालिब

कब वह सुन्‌ता है कहानी मेरी
और फिर वह भी ज़बानी मेरी
ख़लिश-ए ग़म्‌ज़ह-ए ख़ूं-रेज़ न पूछ
देख ख़ूं-नाबह-फ़िशानी मेरी
क्‌या बयां कर के मिरा रोएंगे यार
मगर आशुफ़्‌तह-बयानी मेरी
हूं ज़ ख़्‌वुद-रफ़्‌तह-ए बैदा-ए ख़याल
भूल जाना है निशानी मेरी
मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी
क़द्‌र-ए सन्‌ग-ए सर-ए रह रख्‌ता हूं
सख़्‌त अर्‌ज़ां है गिरानी मेरी
गिर्‌द-बाद-ए रह-ए बेताबी हूं
सर्‌सर-ए शौक़ है बानी मेरी
दहन उस का जो न म`लूम हुआ
खुल गई हेच-मदानी मेरी
कर दिया ज़ु`फ़ ने `आजिज़ ग़ालिब
नन्‌ग-ए पीरी है जवानी मेरी

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