इतवार छोटा पड़ गया
पुस्तक परिचय :
इतिहास जब वर्तमान से संदर्भ ग्रहण करता है तो एक ऐसा शे`र होता है, जो अपने समय का मुहावरा बन जाता है। प्रताप सोमवंशी का यह शे`र कुछ उससी तरह का आम-अवाम का हो चुका है। प्रताप के कुछ और अश्आर
इतवार छोटा पड़ गया |
को सामने रखकर देखें की हमारा कवि हमें अपने निजी अनुभव कहाँ तक शरीक कर पता है। कवि द्वारा काही गयी बात जब हमें अपने मन की बात महसूस होती है तो यह उसकी सफलता की पराकाष्ठा होती है। आज हम इतना व्यस्त जीवन गुजारते हैं या गुजारने को मजबूर हैं कि बिना जरूरत के अपने सगे-संबंधियों , मित्रों और शुभचिंतकों तक से मिलने कि फुर्सत नहीं निकाल पाते। तहज़ीबी तरक्की कि बुलंदियों पर पहुँच कर भी हमने अपनी आधी आबादी को किस हाल में रख छोड़ा है इसका छोटा- सा उदाहरण देकर कवि हमने अंदर तक झकझोर देता है।
यह जो लड़की पे हैं तैनात पहरेदार सौ
देखती हैं उसकी आँखें भेड़िये खूंखार सौ
इन अश्आर में घर के भीतर कि बनावट के पाक फ़ज़ा का प्रतिबिंब तो हमें रस-विभोर करता ही है, लहजे कि ताजगी एक अलग किस्म के आनन्द से परिचित करवाती है।
लेखक परिचय :
जन्म-20 दिसंबर 1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में। इलाहाबाद में शिक्षा-दीक्षा। इस समय अमर उजाला हिंदी दैनिक के कानपुर संस्करण में स्थानीय संपादक। पत्रकारिता में पिछले 18 बरसों से सक्रिय। दक्षिण एशियाई मीडिया फेलोशिप के तहत वषॆ 1999 में बुंदेलखंड के सिलिका खनन क्षेत्रों की महिलाओं पर अध्ययन। औरत और धरती का साझा दुख। जनसत्ता, दैनिक भास्कर, वेबदुनिया डाट काम में विभिन्न पदों पर रहे। चित्रकूट पर एक वृत्त-चित्र का निर्देशन। रेडियो के लिए कई लघु नाटिकाएं लिखीं। कविताओं का कन्नड़, बांग्ला, उर्दू में अनुवाद। अनौपचारिक शिक्षा, वन्य जीवन और बच्चों के लिए कई किताबें प्रकाशित। अनौपचारिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम निर्धारण में विशेषज के तौर पर शामिल। 50 से अधिक पाठ्यक्रम आधारित पुस्तक और प्रवेशिकाओं के रचना मंडल में शामिल।
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