कुछ बोलो मत

कुछ बोलो मत

कुछ बोलों मत चुप ही बैठो,इन नयनों को बातें करने दो,
शब्दों ने हृदय को भेद दिया,अब मौन को भी परखने दो।।
कुछ बोलो मत
किसने क्या-क्या; कैसे हैं किया,
इन भेदों से अब हासिल क्या।
इक उम्र है गुजरी पीड़ा में,अब दर्द ये देना छोड़ भी दो।।
कुछ बोलों मत……
रूह ये रूह का प्रेम तो जान ले,
हो रही पीर दूजा भी पहचान ले।
संग तेरे होकर भी एकाकी हैं हम,अब तो मिल जाओ हम में ये हठ छोड़ दो।।
कुछ बोलों मत…….


– सरिता
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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