टार्च बेचनेवाले हरिशंकर परसाई Torch Bechne Wale

टार्च बेचनेवाले – हरिशंकर परसाई


Tourch bechne wala question answer टार्च बेचने वाले पाठ के प्रश्न उत्तर tourch bechne wala question answers in hindi tourch bechne wala question answers in hindi class 11 class 11 hindi chapter 3 important question हरिशंकर परसाई टोर्च बेचने वाले tourch bechne wala important question Torch Bechne Wale class 11 class 11 Torch Bechne Wale summary Torch Bechne Wale class 11 explaination Torch Bechne Wale class 11 question and answers Torch Bechne Wale summary explanation Torch Bechne Wale full chapter Torch Bechne Wale explanation in hindi class 11 hindi chapter 3 antra question answer class 11th hindi chapter 3 question answer

टार्च बेचने वाले पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ टार्च बेचने वाले लेखक हरिशंकर परसाई जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ में टार्च के प्रतीक के माध्यम से परसाई जी ने आस्थाओं के बाज़ारीकरण और धार्मिक पाखंड पर करारा प्रहार किया है | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करते हैं, जो पहले शहर के चौराहे पर टार्च बेचा करता था | लेखक को वह बीच में कुछ दिन नहीं दिखा | अचानक से एक दिन दिखा, मगर इस बार उस व्यक्ति ने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लम्बा कुरता पहन रखा था | उसके हुलिए को देखकर लेखक को लगा कि शायद उसने संन्यास जीवन का निर्णय ले लिया हो | लेखक के पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया कि वह अब टार्च बेचने का काम नहीं करता क्योंकि उसकी आत्मा की प्रकाश जल गई है | एक घटना का जिक्र करते हुए उसने बताया कि उस घटना से उसका जीवन पूर्णतः बदल गया है | 

टार्च बेचने वाले हरिशंकर परसाई

तत्पश्चात्, उस व्यक्ति ने अपने साथ हुए घटनाक्रम का बयान शुरू किया | उसने बताया कि पाँच साल पहले वह अपने एक दोस्त के साथ पैसे कमाने के लिए निकले थे | वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने लगा | वह लोगों को इकट्ठा कर लेता और रात के अँधेरे का भय दिखाकर शहर के चौराहे पर टार्च बेचा करता था, जिससे लोग अधिक टार्च खरीदते थे | उस व्यक्ति को लगता था कि आदमी को डराना आसान काम है | पाँच साल बाद वायदे के मुताबिक़ जब वह अपने दोस्त से मिलने उसी जगह पहुँचा, जहाँ से वे अलग हुए थे, लेकिन वह वहाँ पर नहीं मिला | वह दिनभर अपने दोस्त का इंतजार किया, लेकिन वह नहीं आया | तत्पश्चात्, वह अपने दोस्त को तलाशने निकल पड़ता है | 

एक शाम को जब वह शहर के सड़क पर चला जा रहा था तो उसने देखा कि पास के मैदान में ख़ूब रौशनी है और एक तरफ़ मंच सजा है | लाउडस्पीकर लगे हैं | मैदान में हजारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे हैं | मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजे एक भव्य पुरूष बैठे हैं | वह पुरुष फ़िल्मों के संत लग रहे थे | उन्होंने गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन शुरू किया | वे इस तरह बोल रहे थे जैसे आकाश के किसी कोने से कोई रहस्यमय संदेश उनके कान में सुनाई पड़ रहा है, जिसे वे बोल रहे हैं | वे लोगों को आत्मा के अँधेरे को दूर करने के तरीके समझा रहा थे | लेखक को वह व्यक्ति कहता है कि उस आदमी की वेशभूषा साधुओं की तरह थी, जिसके कारण वह उसे पहचान नहीं पाया | वह अपना प्रवचन पूरा कर मंच से उतरकर जैसे ही अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ा तो उसने टार्च बेचनेवाले को देखते ही पहचान लिया और कहा कि — “बँगले तक कोई बात-चीत नहीं होगी | वहीं पर ज्ञान-चर्चा होगी |” वह व्यक्ति फौरन समझ जाता है कि पास में ड्राइवर है, इसलिए वह खुलकर बातें नहीं कर रहा है | 

आख़िरकार, दोनों दोस्त पाँच साल बाद पुनः मिले थे | एक दोस्त रात के अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेचने का निर्णय लिया और दूसरा दोस्त आत्मा के अँधेरे को दूर करने के लिए उपदेश देने वाला साधु-संत बनने का | परन्तु, दोनों का मक़सद पैसा कमाना ही था | लेखक से उस व्यक्ति ने कहा कि उसने भी दूसरे दोस्त के वैभव और धन-दौलत के चमक की तरफ़ आकर्षित होकर यह निश्चय किया कि ‘सूरज कंपनी’ के टार्च बेचने से अच्छा है, वह भी धर्माचार्य या गुरू या साधु-संत बनकर लोगों के मन के अँधेरे को दूर कर पैसे कमाए | लेखक ने बड़ी ही चतुराई से टार्च बेचने वाले दो दोस्तों के माध्यम से बताया है कि आख़िर किस प्रकार संतों की वेशभूषा धारण करके आत्मा के अँधेरे को दूर करने वाली टार्च बेचकर समाज में लोग अपना धाक जमाकर बैठे हैं | अत: वह व्यक्ति लेखक को यह बताता है कि अब वह टार्च तो बेचेगा लेकिन रात के अँधेरे को दूर करने वाला नहीं, बल्कि आत्मा के अँधेरे को दूर करने वाला टार्च बेचेगा…|| 

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई जी हैं | इनका जन्म जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था | इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया | तत्पश्चात्, कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात् 1947 से परसाई जी स्वतंत्र लेखन में जुट गए | परसाई जी जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक पत्रिका निकाली | 

इनके व्यंग्य गुदगुदाते हुए पाठक को झकझोर देने में सक्षम है | इनके व्यंग्य-लेखों की विशेषता यह है कि वे समाज में फैली विसंगतियों, विडंबनाओं पर करारी चोट करते हुए चिंतन और कर्म की प्रेरणा देते हैं | ये अपनी रचनाओं में प्रायः बोलचाल के शब्दों का प्रयोग बिल्कुल सतर्कता से करते हैं | 

परसाई जी ने लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं — हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार की तावीज, शिकायत मुझे भी है, और अंत में (निबंध संग्रह); वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर (व्यंग्य लेख-संग्रह)…|| 

टार्च बेचने वाले पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाक़ात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाक़ात एक प्रवचनस्थल पर होती है | पूर्व में दोनों दोस्त बेरोजगार थे तथा पैसे की तलाश में अलग-अलग दिशा में निकले थे | किन्तु, अब परिस्थिति पहले की तरह नहीं थी | उनमें से एक टार्च बेचने वाला तथा दूसरा उपदेश देने वाला बन गया था | 

प्रश्न-2 पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था ? और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पहला दोस्त मंच पर साधु-संत की वेशभूषा में था और वह आत्मा के अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था | 

प्रश्न-3 भव्य पुरूष ने कहा — ‘जहाँ अंधकार है वहीँ प्रकाश है’ | इसका क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर- भव्य पुरूष ने कहा — ‘जहाँ अंधकार है वहीँ प्रकाश है’ | इससे तात्पर्य है कि जिस प्रकार, रात के अंधेरे के बाद जगमगाता हुआ सुबह भी आता है | ठीक उसी प्रकार अंधकार के साथ-साथ प्रकाश का भी उदय होता है | मनुष्य के अंदर छिपी बुराइयों में अच्छाई भी होती है, जिसे जगाने की आवश्यकता होती है | उसके प्राप्त करने के लिए अपने अंदर ही ज्ञान की रौशनी को तलाशना पड़ता है |  

प्रश्न-4 भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने के धंधे में क्या अंतर है ? विस्तार से लिखिए | 

उत्तर- भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने के धंधे में बहुत अंतर है | रात के अँधेरे में लोगों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसे टार्च का प्रकाश ही दूर कर सकता है | इसलिए एक दोस्त लोगों को रात का भय दिखाकर अँधेरे से बचने के लिए ‘सूरज छाप’ टार्च बेचता है और पैसे कमाता है | इसी प्रकार दूसरा दोस्त अपने प्रवचन से लोगों के अंदर ज्ञान का प्रकाश जलाता है | वह लोगों को अज्ञानता के अँधेरे से दूर कर उन्हें ज्ञान के प्रकाश रूपी मार्ग पर चलने का प्रेरणा देता है | इसी प्रकार वह लोगों से पैसा कमाता है | वास्तव में दोनों दोस्त का काम अपने-अपने जगह पर एक धंधे के समान ही है | 

———————————————————

आशय स्पष्ट कीजिए — 
प्रश्न-5 “आजकल सब जगह अँधेरा छाया रहता है | रातें बेहद काली होती हैं | अपना ही हाथ नहीं सूझता |” 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ जी के द्वारा रचित व्यंग्य ‘टार्च बेचनेवाले’ से उद्धृत हैं | कथन से संबंधित व्यक्ति अपना टार्च बेचने के लिए लोगों के मन में अँधेरे के प्रति भय पैदा करता है | जिस भय के कारण लोग टार्च खरीदने के लिए विवश हो जाते हैं | वह कहता है कि अँधेरी रातें इतनी काली होती हैं कि लोगों को अपना हाथ तक नहीं दिखाई देता | 

प्रश्न-6 “प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो | अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ |”

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ जी के द्वारा रचित व्यंग्य ‘टार्च बेचनेवाले’ से उद्धृत हैं | वह व्यक्ति, जो साधु-संत का रूप धारण कर लिया था, लोगों को अपने अंदर बसे अँधेरे को दूर करने के लिए आत्मा के प्रकाश को जगाने की सलाह देता है | वह बड़ी-बड़ी बातें करके लोगों को अपनी माया जाल में फंसाकर उनसे पैसे कमाता था | 

प्रश्न-7 ” धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूँगा | बस कंपनी बदल रहा हूँ |” 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ जी के द्वारा रचित व्यंग्य ‘टार्च बेचनेवाले’ से उद्धृत हैं | जैसा कि जब एक दोस्त के द्वारा टार्च बेचने का काम करने की अपेक्षा दूसरे दोस्त के द्वारा आत्मा के अँधेरे को दूर करने का काम पसंद कर लिया जाता है | मतलब साधु-संत का वेश धारण करके पैसे कमाने का तरीका उसे ज्यादा पसंद आता है | तभी वह उसी काम को करने का निश्चय करता है | 

——————————————————–

टार्च बेचने वाले पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

• आह्वान – पुकारना, बुलाना
• शाश्वत – चिरंतन, हमेशा रहनेवाली
• सनातन – सदैव रहनेवाला
• गुरू गंभीर वाणी- विचारों से पुष्ट वाणी
• सर्वग्राही – सबको ग्रहण करनेवाला, सबको समाहित करनेवाला
• स्तब्ध – हैरान
• हरामखोरी – मुफ़्त में या नाजायज़ तरीके से किसी का धन या वस्तु ले लेना 
• लहुलूहान – खून से लथपथ  | 

You May Also Like