ज्योतिबा फुले सुधा अरोड़ा

सुधा अरोड़ा – ज्योतिबा फुले

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ज्योतिबा फुले पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या निबंध ज्योतिबा फुले लेखिका सुधा अरोड़ा जी के द्वारा लिखित है | प्रस्तुत निबंध में लेखिका, ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी के द्वारा समाज सुधार संबंधी कार्यों के बारे में बताती हैं। स्त्रियों की समानता की लड़ाई की लिए उन्हें समाज का विरोध भी सहना पड़ा।

ज्योतिबा फुले सुधा अरोड़ा
ज्योतिबा फुले

भारत के प्रमुख समाज सुधारकों में सुमार ज्योतिबा फुले, सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में उनकी सक्रिय उपस्थिति दर्ज है।  उन्होंने ब्राह्मण वर्चस्व, पूंजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी। उन्होंने सत्यसोधक समाज की स्थापना की। ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक दूसरे का पूरक कहा है। वे कहते थे कि राजसत्ता व धर्मवादी सत्ता आपस में साठ गांठ करके समाज व्यवस्था को अपने अनुरूप उपयोग करते हैं। वे चाहते थे कि इसका विरोध करने के लिए दलित और महिलाएं आगे आएं। वे विचारों में अग्रणी थे। उनके अनुसार एक आदर्श परिवार वह है जिसमें – पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्याधर्मी हो। 

ज्योतिबा फुले लिखते हैं – स्त्री शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने अपने स्वार्थ में बंद कर दिए हैं जिससे कि स्त्रियां अपने मानवीय अधिकारों को ना समझ पाएं। जैसी स्वतंत्रता पुरुषों को है, अगर वैसी स्वतंत्रता स्त्रियां चाहने लगी तो? ज्योतिबा फुले ने एक नई विवाह पद्धति की शुरुवात की, जिसमें स्त्रियों की समानता को विशेष महत्व दिया गया। जिससे उन्होंने ब्राह्मण वर्चस्व ही समाप्त कर दिया। उन्होंने विवाह पद्धति में उपयोग किए जाने वाले पुरुष को प्रधान बनाने वाले मंत्रों और स्त्रियों को पुरुषों का गुलाम बनाने वाले मंत्रों को हटा दिया और स्त्रियों को पुरुषों के बराबर समानता देने वाले मंत्रों को आरंभ किया। 

ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों को पुरुषों के समान स्वतंत्रता दिलाने के लिए अथासंभव प्रयत्न किए।  ज्योतिबा फुले को महात्मा की उपाधि से सन् 1888 में सम्मानित किया गया तो उन्होंने प्रतिक्रिया दी कि – महात्मा कहकर, मुझे साधारण जन से अलग मत कीजिए और मेरे संघर्षों को पूर्ण विराम मत दीजिए। ज्योतिबा फुले जी जिस काम को कहते थे, उस काम को अपने आचरण और व्यवहार में उतारते भी थे। और इस बात का प्रमाण है – उनका अपनी पत्नी को शिक्षित करना। उन्होंने अपने पत्नी को मराठी के साथ साथ अंग्रेजी भाषा भी लिखना – पढ़ना और बोलना सिखाया।

लड़कियों की शिक्षा के लिए पूरे भारत में पहली कन्याशाला की स्थापना 14 जनवरी 1848 को पुणे में की गई थी। जिसके बाद ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई को आलोचनाओं, बाधाओं और बहिष्कार का सामना करना पड़ा। उन्हें समाज के दबाव में अपने घर को छोड़ना पड़ा। 1840- 1890 तक पचास वर्षों तक ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने मिलकर अछूतों के झोपडिय़ों में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह किया, अनाथ बच्चों और विधवाओं के के लिए अपने दरवाजे खोले, समाज में फैले कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ हमेशा खड़े रहे। महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने मिलकर समाज के समक्ष एक आदर्श दाम्पत्य का उदाहरण पेश किया है…|| 

सुधा अरोड़ा का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखिका सुधा अरोड़ा जी हैं। इनका जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। सन् 1969 से 1971 तक अध्यापन कार्य किया। कथा साहित्य में इनकी एक विशेष पहचान है। इनके कहानी संग्रह इस प्रकार से हैं — बगैर तराशे हुए, युद्ध विराम, काला शुक्रवार, महानगर की भेाैतिकी, कांसे का गिलास तथा औरत की कहानी आदि। उनकी कहानियाँ केवल भारतीय भाषाओं में सीमित ना होकर विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हैं।

लेखिका सुधा अरोड़ा जी की महिलाओं से जुड़ी मुद्दों और समस्याओं को उजागर करने में हमेशा सक्रियता रही है। सुधा अरोड़ा जी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत कथाकार हैं। उनकी शैली बड़ी सहज और रोचक है, जो उन्हें सब में विशेष बनाती है…|| 

ज्योतिबा फुले पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 ज्योतिबा फुले ने किस प्रकार की मानसिकता पर प्रहार किया ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ज्योतिबा फुले ने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर प्रहार किया। जिसमें ब्राह्मण समाज स्वयं को श्रेष्ठ जाति घोषित करते थे और दलित और महिलाओं को दबा कर रखते थे और उन्हें किसी तरह की स्वतंत्रता और शिक्षा नहीं दी जाती थी।

प्रश्न-2 आदर्श परिवार के बारे में ज्योतिबा फुले के विचार बताइए ? 

उत्तर- आदर्श परिवार के बारे में ज्योतिबा फुले की अवधारणा थी कि जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता इसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो वह परिवार एक आदर्श परिवार है।

प्रश्न-3 अस्पृश्य जातियों के उत्थान के बारे में ज्योतिबा ने क्या उपाय किए ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, अस्पृश्य जातियों के झुग्गी झोपड़ियों में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करना, एक घूंट पानी पीकर प्यास बुझाने की तकलीफ को देखते हुए अपने घर के पानी का हौद सभी जातियों के लिए खोल दिये। कुरीतियों और अंध श्रद्धाओं के खिलाफ हमेशा दलित शोषितों के साथ खड़े रहे।

प्रश्न-4 सावित्रीबाई के प्रमुख कार्य क्या थे ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, सावित्रीबाई के प्रमुख कार्य थे शिक्षा और साक्षरता के क्षेत्र में महिलाओं और अछूतों के उत्थान का कार्य करना, छुआछूत मिटाना और विधवा पुनर्विवाह करवाना।

प्रश्न-5 ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई के जीवन से आज के समाज को क्या प्रेरणा मिलती है ?

उत्तर- ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई के जीवन से आज के समाज को प्रेरणा मिलती है कि किस प्रकार लगातार व्यवधानों, अड़चनों, लांछनों और बहिष्कार का सामना करने के बावजूद अपने संकल्प के प्रति समर्पित रहें और दलित व महिलाओं के उत्थान, समाज में फैले कुरीतियों और अंध विश्वासों के खिलाफ हमेशा तत्पर रहें।

प्रश्न-6 ज्योतिबा फुले ने किस प्रकार के सर्वांगीण समाज की कल्पना की है ? 

उत्तर- ज्योतिबा फुले ने समाज में व्याप्त विभिन्न ओछी सोच के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद किया है | ब्राह्मण समाज में व्याप्त रूढ़वादी सोच तथा स्वयं को श्रेष्ठ जाति घोषित करने की मानसिकता पर प्रहार किया। ज्योतिबा फुले जानते थे कि ब्राह्मणवाद की संकीर्ण सोच से जकड़े लोग इस प्रकार के समाज में शूद्रों तथा महिलाओं के अधिकारों का क्षरण कर उन्हें गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं | 

प्रश्न-7 ज्योतिबा फुले स्त्री-पुरुष के बीच किस प्रकार के संबंध चाहते थे ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ज्योतिबा फुले चाहते थे कि स्त्री-पुरुष दोनों को समान अधिकार मिले | पुरुषों की तुलना में स्त्रियों के साथ कोई भेदभाव न हो | ज्योतिबा फुले स्त्रियों को अपनी शोषण अवस्था से उठकर अपने अधिकार पाने के लिए उत्साहित भी करते हैं | 


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प्रश्न-8 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए — 

(क) सच का सवेरा होते ही वेद डूब गए, विद्या शूद्रों  के घर चली गई, भू-देव (ब्राह्मण) शरमा गए | 
(ख) इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ़ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आंदोलन करना चाहिए | 

उत्तर- (क) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सुधा अरोड़ा’ जी के द्वारा  रचित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से ज्योतिबा फुले कहते हैं कि जबसे शूद्र जाति वाले लोगों ने शिक्षा के महत्व को समझकर शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया है, तबसे ब्राह्मण समाज का अंत निश्चित हो गया है | आज हालात बदल गए हैं | अब वेदों का महत्व समाप्त हो गए हैं | शूद्रों के पास ज्ञान की शक्ति देखकर ब्राह्मण समाज के होश उड़ गए हैं | शिक्षा का अधिकार तो सबके लिए है | 

(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सुधा अरोड़ा’ जी के द्वारा रचित निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत हैं | ज्योतिबा फुले इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि सदियों से ब्राह्मण समाज ने शूद्रों के साथ-साथ स्त्रियों का भी शोषण किया है। उन्होंने समाज में स्त्रियों को कभी सिर नहीं उठाने दिया। पत्नी धर्म के नाम पर उन्हें गुलाम बनाकर रखा। इसलिए शूद्रों के अलावा स्त्रियों को भी अपने अधिकारों के लिए ब्राह्मण समाज का ख़िलाफत करना चाहिए | वे तभी अपने अधिकारों को पाने में कामयाब हो सकेगीं | 

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ज्योतिबा फुले पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

• मठाधीश – किसी मठ का स्वामी
• हाट – बाज़ार
• आग बबूला होना – अत्याधिक क्रोध करना
• कन्याशाला – लड़कियों की पाठशाला
• आमादा – तत्पर
• अप्रत्याशित – जो आशा से परे हो
• शुमार – शामिल
• उच्चवर्णीय – ऊँची जाति के
• पूँजीवादी – जो पूँजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है
• संगृहित – एकत्रित करना
• सत्यधर्मी – सत्य धर्म का अचरण करनेवाला
• सर्वांगीण – सब प्रकार से
• संभ्रांत – श्रेष्ठ
• पर्दाफाश – उजागर करना
• पक्षपात – भेदभाव
• अवधारणा – विचार  | 

 

                                                                                                                                        – मनव्वर अशरफ़ी 

                           जशपुर (छत्तीसगढ़) 

                    manowermd@gmail.com

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