और एक सवाल

और एक सवाल 

अस्वीकृत होने का बोझ
और एक सवाल
अस्वीकार कर दिये जाने के ग्लानि के साथ
आगे बढना क्या आसान है ?
फिर जवाब मे एक और सवाल..
क्यों नहीं  ?

और एक सवाल

हाँ..  क्योंकि स्वीकार कर लिये जाने पर शायद बात वहीं रह जाये,
पर अस्वीकृत होना एक खोज है..
स्वयं मे ….बेहतर का ,
स्वयं की…. बेहतरी का
एक मौका है आइना देख निखरने का
फिर आइना दिखा उभरने का..
ये रास्तों का अंत नहीं ,
हौसलो की परीक्षा है
कि उसी रास्तों से आगे अपना रास्ता बनाकर..
उसी जगह पंहुचना है..
जहाँ अस्वीकार कर दिये जाने वाली ग्लानि
आत्मसम्मान से लबालब
आत्म निर्भर हो उठे..
किसी और को राह दिखाने के लिये …

 साधना सिंह 
गोरखपुर

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