वास्तविकता – महेंद्र भटनागर

जिंदगी ललक थी ; किन्तु भारी जुआ बना गयी ,
जिंदगी फलक थी किन्तु अँधा कुआँ बन गयी ,
कल्पनाओं रची ,भावनाओं भरी ,रूप – श्री
जिंदगी ग़ज़ल थी ,बिफर कर बद्दुआ बन गयी !

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