नदी कविता श्याम नारायण पाण्डेय | Nadi Poem Explanation Question Answer

नदी कविता श्याम नारायण पाण्डेय

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नदी कविता का सारांश

प्रस्तुत पाठ या कविता नदी , श्यामनारायण पांडेय जी के द्वारा रचित है | कवि ने इस कविता के माध्यम से नदी के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी को बताने का प्रयास किया है | नदी को एक जीवन दायिनी के रूप में बताया गया है | पर्वतों-चट्टानों से लड़ती हुई नदी अपने किनारे बसे शहरों-गाँवों को जीवन देती है | कभी माँ की तरह प्यार करती है और दुलारती भी है तो कभी-कभार रौद्र रूप धारण करके डराती भी है | देश की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | इस प्रकार अपने लक्ष्य की प्रतीक्षा में बहती हुई नदी अंतत: सागर में विलीन हो जाती है…|| 
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नदी कविता का भावार्थ व्याख्या 

क्षणभर रुककर विश्राम करो, 
क्यूँ नदी निरन्तर बहती हो ?
जब-जब मैंने देखा पाया, 
तुम दौड़-धूप में रहती हो | 
नदी कविता श्याम नारायण पाण्डेय Nadi Poem Explanation Question Answer
नदी


लहरों पर लहर उठाती हो, 

तट-बंधों से टकराती हो | 
संघर्ष स्रोत है जीवन का, 
तुम हँस-हँसकर बतलाती हो | 

भूधराकार चट्टानों को, 
लड़-लड़कर तोड़ दिया तुमने |
पर्वत समरस मैदान बने,
रुख अपना मोड़ दिया तुमने | 

ताकत को ताकत से काटा, 
कमज़ोरों को पुचकार दिया | 
ऊँचे शिखरों पर वार किया, 
फसलों को चूमा, प्यार दिया | 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ  श्यामनारायण पांडेय  जी के द्वारा रचित कविता  नदी  से उद्धृत हैं | इस कविता के माध्यम से कवि नदी के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी को बताने का प्रयास किया है | कवि नदी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हें जब भी मैं देखता हूँ तुम दौड़-धूप में लगी रहती हो, निरन्तर बहती रहती हो, जरा कुछ देर ठहर कर आराम भी कर लो | तुम लहरों पर लहर उठाती हो और बेख़ौफ होकर तट-बंधों से टकराती हो | तुम हँस-हँसकर ये बतलाती हो कि संघर्ष ही स्रोत है जीवन का | कवि नदी से कहते हैं कि तुमने रास्ते में आने वाले बड़े-बड़े चट्टानों को भी चीर दिया और जब पर्वत समरस मैदान बन गया तो तुमने अपना रुख मोड़ दिया अर्थात् नदी बड़े-बड़े पहाड़ों व चट्टानों को काटकर उसे उपजाऊ मैदान में बदल देती है | इसलिए नदी को पर्वत से भी महान कहा गया है | कवि नदी से कहते हैं कि तुम्हारे रास्ते में जिस तरह की चुनौती आई, तुमने उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया | ताकत को ताकत से काटा और कमज़ोरों को पुचकार दिया | एक तरफ़ ऊँचे-ऊँचे शिखरों पर वार किया, तो दूसरी तरफ़ फसलों को चूमा और ख़ूब प्यार दिया | 
(2)- हे क्रांति-शांति की पयस्विनी, 
तुमको मैं केवल नदी कहूँ | 
या स्वतंत्रता-संघर्ष कहूँ, 
या फसलों की ज़िंदगी कहूँ | 

तुम शहरों को भी प्यारी हो, 
तुम गाँवों को भी प्यारी हो | 
दोनों को दूध पिलाती हो, 
तुम दोनों की महतारी हो | 

नंगल-भाखड़ा-रिहंद आदि, 
तेरे जाये हैं, छौने हैं | 
तेरी महानता के आगे, 
पर्वत भी लगते बौने हैं | 

घर-घर में बिजली बन करके, 
रोशनी बाँटने जलती हो | 
कर और कारखानों में तुम, 
धड़कन भरती हो, चलती हो | 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ  श्यामनारायण पांडेय  जी के द्वारा रचित कविता  नदी  से उद्धृत हैं | इस कविता के माध्यम से कवि नदी के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी को बताने का प्रयास किया है | कवि नदी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हें मैं केवल नदी कहूँ या क्रांति और शांति का प्रतीक, या फिर तुम्हारे निरन्तर सफ़र को स्वतंत्रता-संघर्ष का नाम दूँ या फिर कह दूँ कि तुम फसलों की ज़िंदगी हो | तुम शहर और गाँव दोनों को प्यारी हो, दोनों की महतारी (माँ) बनकर दोनों को दूध पिलाती हो अर्थात् तुम जीवन दायिनी का फ़र्ज़ भी निभाती हो | कवि नदी से कहते हैं कि ये जो नंगल-भाखड़ा-रिहंद आदि नदियाँ हैं, ये सभी तुम्हारे जन्म दिए हुए हैं अर्थात् तुम्हारे ही बच्चे के समान हैं | मुझे तो तेरी महानता के आगे पर्वत भी बौने लगते हैं | आखिर तुमसे ही तो बिजली बनी और घर-घर रौशन हुआ, जिसकी वजह से कल और कारखानों में काम होता है | 
(3)- तेरी लहरों में अंकित है, 
संस्कृतियों का उत्थान-पतन | 
तुमको देखा ज़िंदगी हँसी, 
तुम रूठ गईं, रूठा जीवन | 

जिन देशों ने तुमको पाया, 
वे ऊँचे उठे, महान बने | 
सब मिला मगर तुम नहीं मिली, 
तो उजड़े रेगिस्तान बने | 

सैलाब रूप धारण कर तुम,
उफनाती हो जब लहर-लहर | 
पुल, सड़क, रेल बह जाते हैं, 
थर-थर करते हैं गाँव-शहर | 

फिर सागर की व्यापकता में, 
मिल जाती हो, खो जाती हो | 
जो लक्ष्य खोजने निकली थी 
वह लक्ष्य स्वयं हो जाती हो | 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ  श्यामनारायण पांडेय  जी के द्वारा रचित कविता  नदी  से उद्धृत हैं | इस कविता के माध्यम से कवि नदी के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी को बताने का प्रयास किया है | कवि नदी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ये जो तुम्हारे लहर हैं, इसमें संस्कृतियों का उत्थान-पतन का इतिहास निहित है | कभी तुम माँ बनकर जीवन दायिनी का फ़र्ज निभाती हो, तो कभी रूठ कर या रौद्र रूप धारण करके पल भर में हजारों ज़िंदगियाँ तबाह भी कर देती हो | परन्तु, ये भी सत्य है कि जिन देशों ने तुम्हें पाया है, वे ऊँचे उठे और जिन देशों में तुम्हारा अस्तित्व नहीं, वह रेगिस्तान बन गए | इससे तुम्हारी महत्ता सिद्ध होती है | कवि नदी से कहते हैं कि तुम कभी सैलाब (बाढ़) बनकर पुल, सड़क, रेल सब बहा ले जाती हो, जिससे सारा गाँव-शहर तुम्हारे रौद्र रूप से थर-थर काँपने लगते हैं | अंतत: अनंत सागर की गहराई में तुम मिल जाती हो तथा खो जाती हो | इस प्रकार जो लक्ष्य तुम खोजने निकली थी, वह लक्ष्य ख़ुद हो जाती हो | 
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नदी कविता श्याम नारायण पाण्डेय के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 नदी हँस-हँसकर क्या बतलाती है ? 

उत्तर- नदी हँस-हँसकर यह बतलाती है कि संघर्ष ही जीवन का स्रोत है | 
प्रश्न-2 नदी के छौने किन्हें कहा गया है ? 

उत्तर- नदी पर बने बाँधों को नदी के छौने कहा गया है | 
प्रश्न-3 नदी में उठती लहरें किसका प्रतीक हैं ? 

उत्तर- नदी में उठती लहरें संघर्षमय जीवन में आने वाली दुःखों के उत्थान-पतन का प्रतीक हैं | 
प्रश्न-4 नदी को पर्वत से भी महान क्यूँ कहा गया है ? 

उत्तर- नदी के जल से हर प्राणी को जीवन मिलता है | नदी बड़े-बड़े पहाड़ों व चट्टानों को काटकर उसे उपजाऊ मैदान में बदल देती है | इसलिए नदी को पर्वत से भी महान कहा गया है | 
प्रश्न-5 देश की उन्नति और अवनति नदियों पर कैसे निर्भर है ? 

उत्तर- पीने का पानी, कृषि संबंधी, वन संपदा, कल-कारखानों इत्यादि में नदी सहायक सिद्ध होती है | जिन देशों में नदियों का अस्तित्व होता है, वे देश आर्थिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर होते हैं | अभाग्यवश जिन देशों में नदियाँ नहीं होती उन देशों को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है | इस प्रकार वे कहीं न कहीं उन्नति की दौड़ में पिछड़े नज़र आते हैं | 
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प्रश्न-6 सही उत्तर पर √ लगाइए — 
श्याम नारायण पाण्डेय

(क)- जीवन का स्रोत क्या है ? 

उत्तर- संघर्ष 
(ख)- नदी की लहरों में क्या अंकित है ? 
उत्तर- संस्कृतियों का उत्थान-पतन 
(ग)- जिन देशों ने नदी को पाया, वे क्या बन गए ? 
उत्तर- विकसित और महान 
(घ)- नदी किसमें धड़कन भरती है ? 
उत्तर- कल-कारखानों में 
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भाषा से 
प्रश्न-7 दिए गए शब्दों को पंचम अक्षर का प्रयोग करके लिखिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर है – 
• निरंतर – निरन्तर 
• क्रांति – क्रान्ति 
• स्वतंत्रता – स्वतन्त्रता 
• अंकित – अङ्कित 
• ज़िंदगी – ज़िन्दगी 
• रिहंद – रिहन्द 
प्रश्न-8 दिए शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची लिखिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर है – 
• नदी — सरिता, तटिनी, तरणी 
• जीवन — आयु, प्राण, ज़िंदगी 
• पर्वत — नग, गिरि, पहाड़ 
• रोशनी — ज्योति, प्रकाश, उजाला 
• सागर — जलधि, समुद्र, पयोधि 
• दूध — दुग्ध, अमृत, क्षीर 
प्रश्न-9 दिए गए शब्दों में से तत्सम और तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर है – 
• गाँव — तद्भव 
• स्रोत — तत्सम 
• विश्राम — तत्सम 
• उत्थान — तत्सम 
• लक्ष्य — तत्सम 
• दूध — तद्भव 
• पर्वत — तत्सम 
• रात — तद्भव 
• जीवन — तत्सम 
• प्यार — तद्भव 
• ऊँचा — तद्भव 
प्रश्न-10 पाँच विदेशी और पाँच देशज शब्द सोचकर लिखिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर है – 
• विदेशी — कंप्यूटर, किताब, तूफ़ान, ट्रेन, स्कूल 
• देशज — फुनगी, लोटा, डिबिया, पगड़ी, धोती 
प्रश्न-11 कविता में आए तुकांत शब्द चुनकर लिखिए — 

उ. निम्नलिखित उत्तर है – 
• बहती-रहती 
• वार-प्यार 
• छौने- बौने 
• महान-रेगिस्तान 
• टकराती-बतलाती 
• प्यारी-महतारी 
• जलती-चलती 
• लहर-शहर 
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नदी कविता के शब्दार्थ 

• तट-बंध — नदी के किनारे की सीमा 
• स्रोत — माध्यम या ज़रिया 
• भूधराकार — पर्वत के आकार की 
• समरस — एक से 
• पयस्विनी — दूध देने वाली 
• महतारी — माता 
• जाये — जन्म दिए हुए 
• छौने — बालक 
• कल — यंत्र / मशीन आदि 
• सैलाब — बाढ़ 
• व्यापकता — फैलाव, विस्तार 
                                

© मनव्वर अशरफ़ी 

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