तुलसी का पौधा
एक माली ने अपने घर का आँगन बहुत सूना पाया
मन बनाकर एकदिन वो तुलसी के बीज ले आया।
अपने आँगन में मिटटी खोदी और तुलसी के बीज बोकर मुस्कुराया —
“इसमें पौधा होगा तो मेरा आँगन भर जायेगा
और तुलसी की महक से मेरा घर भी तर जायेगा।
प्रतिदिन उसमे पानी डालता खाद डालता व् उसे सींचता
आते जाते ख़ुशी से उसकी १ -१ डाली को बढ़ता देखता।
दिन बीते व् तुलसी का पौधा बढ़कर खिल गया
आँगन को जैसे कोई मुख्य आकर्षण मिल गया।
पौधे ने माली के घर की शोभा बढ़ा दी
आती सर्दी से बचने के लिए माली ने उसे चुनरी ओढ़ा दी।
पौधा दिन रात बढ़ने लगा
माली का आँगन तुलसी से ढकने लगा।
पर माली को आभास था की अब लोगों से वो पौधा छुप न पायेगा
लोगों ने कहा “तेरा आँगन छोटा है ये बढ़ता पौधा इसमें न समायेगा”।
उसने माली को बुलाया और मोल लगाया।
कहा तुम्हारा आँगन छोटा है इसे मेरे बागीचे में लगाओ
कल सुबह ही इसे १ गमले में लगाकर मेरे घर ले आओ।
माली ने ये बात सही जानकार पौधे को निकालकर १ गमले में लगाया
और भारी मान से उसे सेठ के घर दे आया।
सोचने लगा के पौधे के लिए यही ठीक है
मन हुआ तो देख आऊंगा – सेठ का घर नज़दीक है।
कुछ दिन गुज़रे —
सेठ तुलसी के पौधे को बाग़ीचे में लगाकर भूल गया
देखा की कुछ ही महीनो में पौधा मुरझाकर झूल गया।
सेठ ने माली को फिर बुलवाया – कहा ये पौधा चलता नहीं
कितना भी पानी डालो खिलता ही नहीं।
तेरा पौधा ही ख़राब है इसे वापिस लेजा
व् बिना किसी देरी के मेरे पूरे पैसे वापिस देजा।
माली दुखी हो पौधा वापिस ले आया
बहुत कोशिश की फिर से लगाने की पर उसे जड़ से शक्तिहीन पाया।
तब समझ आया – पौधे की जड़ें तो इस आँगन में ही रह गयीं थी
उसे निकलकर गमले में लगाने से उसमे जान ही शेष नहीं थी।
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बेटियां भी उसी पौधे के जैसी होती हैं
अपने माता पिता के आँगन में जड़ी होती हैं
नए बाग़ीचे में खिलने के लिए उन्हें समय लगता है,
सिर्फ पानी से नहीं-हवा धुप खाद सब चीज़ों से सींचना पड़ता है।
और १ खिला हुआ पौधा यदि नए आँगन में मुरझा जाता है
तो हर बार दोषी पौधा नहीं – बग़ीचा भी पाया जाता है।
अंत में बस यही कहना चाहूंगी की —
हर बेटी का माता पिता के घर पर — बेटे जितना ही अधिकार है
वो भी उसी मिटटी का आविष्कार है।
यदि उन्हें लेने का अधिकार है — तो देने का भी अधिकार है।
यदि बताने का अधिकार है — तो पूछने का भी अधिकार है।
अगर जाने का अधिकार है — तो वापिस आने का भी अधिकार है।
बेटी को अपना धन समझें — पराया नहीं
वह बोझ नहीं-आपके आँगन की शोभा है।
-ऋषिका गुप्ता
जकार्ता (इंडोनेशिया)