कितने लोगों की जरूरत

कितने लोगों की जरूरत…

मान लीजिए कि एक सरकारी दफ्तर में बल्ब फ्यूज हो गया । उसे बदलने की जरुरत है । इसमें कितना समय लगेगा ? आप कहेंगे कि बल्ब चेंज करना कितना बड़ा काम है ! तुरंत हो जाएगा । 
नो सर । तुरंत नहीं होगा । आप कह रहे हैं कि तुरंत हो जाएगा- तब सरकारी दफ्तर में कैसे काम किया जाता है
बल्ब
बल्ब

आपको मालूम नहीं । किसी भी सरकारी आफिस में कौन सा काम कब कैसे होगा-यह सभी कईं चीजों पर निर्भर करता है । पहला विषय-यह कौन से देश का सरकारी आफिस है ।
यह बल्ब बदलना विभिन्न देशों के सरकारी आफिसों में किस तरह से होता, मै आपको विस्तार से बताता हूं ।

इंगलैंड- वहां बल्ब बदलने के लिए पांच लोगों की जरूरत होगी और समय लगेंगे दो घंटे । एक बल्ब बदलेगा और चार लोग कहेंगे हाय हाय पुराना बल्ब ही सही था । फ्यूज हो गया तो क्या हुआ, पुराने बल्ब का एक वृत्तांत है । नये बल्ब में वह कहां! उनमें से एकाध इस सिलसिले में किसी अखबार के संपादक को पत्र भी लिख सकते हैं । 
भारत- कम से कम तीन साल का समय लगेगा । उसी बीच अगर चुनाव हुआ तो  दो साल ओर । चुनाव के बाद अगर सत्ता में दूसरी पार्टी आ गई, तब ओर छह-आठ महीने लग सकते हैं । बल्ब लगाने के लिए कितने लोगों की जरूरत होगी यह सही सही बताना मुश्किल है । सैकड़ों लोगों की जरूरत हो सकती है । हमारा सिस्टम बड़़ा व्यापक है । बल्ब फ्यूज होने के बाद कनिष्ठ लिपिक नोट लिखेंगे- उस जगह में बल्ब फ्यूज हुआ है, उसे चेंज किया जाए । उसी नोट में इससे पहले कब वहां बल्ब लगा था, उस बल्ब की कीमत क्या थी इन सभीका भी विवरण भी देना होगा । वरिष्ठ लिपिक इस फाइल को आगे बढ़ाएंगे । फाइल आगे-आगे बढ़ता जाएगा । अंत में अधिकारी उसे अपनी मंजूरी देंगे । इसके बाद नियमानुसार बल्ब खरीदने के लिए टेंडर आमंन्त्रित किया जाएगा । टेंडर फाइनल होते होते कोई एक कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुका होगा-बल्ब खरीदने में धांधली हुई । कोर्ट बल्ब खरीदने पर रोक लगाएगा और इस विषय की जांच करने के लिए एक आयोग का गठन करने का निर्देश देगा । उसका सदस्य बनने के लिए लोगों में खींचातानी होगी । अंत में एक सेवानिवृत विचारपति की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन होगा । उसमें सरकारी , विपक्ष के नेता, सेवानिवृत नौकरशाह समेत पच्चीस लोग सदस्य बनेंगे । जांच होगा । आयोग रिपोर्ट जमा करने तक सत्ता में दूसरी सरकार होगी । नई सरकार आयोग का गठन करेगी । नया आयोग नई रिपोर्ट देगा । उसके अनुध्यान के लिए फिर से नई कमेटी बनाई जाएगी । कमेटी की रिपोर्ट में लिखा जाएगा, बल्ब खरीदी में धांधली होने का प्रमाण नहीं । उसके बाद बल्ब बदलने का आर्डर पास होगा । इसी बीच आफिस का निजीकरण हो चुका होगा । वह आफिस वहां से स्थानांतरित हो चुका होगा । वहां बल्ब लगाने की जरूरत नहीं होगी । फिर वहां बल्ब लगाया जाएगा । क्योंकि सरकारी आदेश है । भारत में कुछ हो या न हो सरकारी आदेश का पालन जरूर होता है ।
पाकिस्तान- नया बल्ब कभी नहीं लगेगा । पुराना बल्ब नवाज शरीफ के समय लगाया गया था या बेनजीर भुट्टो के समय लगाया गया था यह तय होते होते आफिस बिल्डिंग को उड़ा दिया जाएगा ।
यह तो रही सरकारी आफिस की बात । अगर कोई प्रश्न करे कि बल्ब बदलने के लिए कितने माइक्रोसॉफ्ट इंजीनियर की जरूरत होगी ?
उत्तर- एक भी इंजिनियर की जरूरत नहीं होगी । क्योंकि वह कहेंगे कि अंधेरा ही रौशनी है । वह जो कहेंगे पूरा विश्व उस पर भरोसा करेगा । इसीलिए हम अंधेरे को ही रौशनी मान लेंगे ।

– मृणाल चटर्जी
अनुवाद- इतिश्री सिंह राठौर

मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं।मृणाल ने अपने स्तम्भ ‘जगते थिबा जेते दिन’ ( संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया।इनका उपन्यास ‘यमराज नम्बर 5003’ का अंग्रेजी अनुवाद हाल ही में प्रकाशित हुआ है । इसका प्रकाशन पहले ओडिया फिर असमिया में हुआ । उपन्यास की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजी में इसका अनुवाद हुआ है । 

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