तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन

तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन

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तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि माँ कि उपमा नहीं दी जा सकती है। माँ की तुलना करने में कवि बड़ी उलझन में पड़ जाता है। वह अपनी माँ से कहता है कि तुम्ही मेरी समस्या का समाधान करो। पूरे संसार में तुम्हारे जैसे कोई नहीं है। तुम सिर्फ अपनी तरह की माँ  हो अर्थात तुम अनुपम हो। ब्रह्मा भगवान् सृष्टि के रचियता हैं ,उसकी तुलना में माँ न केवल अपने बच्चे का निर्माण करती है ,बल्कि उसका पालन भी करती है। भगवान् शिव अपने तांडव द्वारा सारे संसार के अत्याचार को नष्ट कर देते हैं। वहीँ माँ अपने बच्चे की पीड़ा को चुन चुन कर समाप्त करती है। इन विशेषताओं के कारण माँ के सामने शिव व ब्रह्मा भी टिक नहीं सकते हैं। माँ की तुलना सिर्फ माँ से ही की जा सकती है क्योंकि माँ सिर्फ माँ जैसे ही होती है। 
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
व्याख्या – प्रस्तुत पन्क्तियों में कवि कहता है कि बुद्ध महात्मा जैसे सिद्ध पुरुष बिना प्रेम के सूखे हुए है ,अर्थात उन्हें प्रेम चाहिए। भगवान को भी भक्त की भक्ति चाहिए। इनकी तुलना में माँ अपने बच्चों से बिना शर्त के प्रेम करती है। भले ही माँ के दो बच्चे हों। बच्चों का व्यवहार भी माँ के प्रति समान न हो ,लेकिन वह अपने बच्चों से समान प्रेम करती हैं। भले ही उसका कोई बच्चा उससे प्रेम करे या सताए। माँ का प्रेम सबके लिए समान है। माँ की तुलना सिर्फ माँ से ही की जा सकती है। 
कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि तुम्हारी करुणा सागर से भी ज्यादा गहरी है। तुम्हारे प्रेम के सम्मुख करुणा के सागर अर्थात भगवान भी छोटे दिखाई पड़ते हैं। कहा जाता है कि भक्त अपने भगवान को भावना के आधार पर ही ईश्वर भक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार माँ भगवान से भी ज्यादा स्नेहशील ज्यादा दिखाई देते हैं। माँ सिर्फ माँ जैसी ही होती है। 
मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
माँ
माँ
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि जब भी मैं परेशान हो जाता हूँ तो तुम मेरी परेशानी को शांत करने के लिए तुम भी व्याकुल हो जाती हो। जब भी मैं भूखा रहता हूँ तो तुम मुझे भोजन करा देती हो और स्वयं भूखी रह जाती है। इसी बीच संसार में परिवर्तन के कारण मैं भी बदल गया हूँ लेकिन तुम्हारी ममता में कोई कमी नहीं आई। तुम्हारे लिए अपने बच्चों के प्रति ममता समान है। तुम्हारी तुलना नहीं  की जा सकती है। 
तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
व्याख्या – कवि कहता है कि माँ तुमसे ही मैंने अपना जीवन पाया। मैंने इस संसार को तुम्हारे कारण ही जान पाया। तुमने मुझे पालन पोषण करके अपने पैरों पर चलना सिखाया। लेकिन मेरी अहसानफरामोशी देखो कि मैंने तुम्हारी कोई सहायता नहीं की। तुमने भले ही मुझे जन्म देकर पालन पोषण किया है ,लेकिन मेरा जीवन तुम्हारे किसी काम ना आ सका। मेरी गलतियों को तुम हमेशा क्षमा कर देती हो। तुम्हारा व्यवहार मेरे लिए हमेशा करुणा दायी रहता है। तुम्हारी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। तुम अपने ही समान हो। 

Summary of tum hi mitao meri uljhan कविता का सार / मूल भाव 

तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन कविता शास्त्री नित्यगोपाल कटारे जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है। इस कविता में आपने माँ के प्रति अपने भावनाओं को प्रकट किय है। पूरे संसार के लिए माँ एक अनंत अवधारणा है ,जिसमें उन्होंने अखिल विश्व समाया हुआ है। माँ की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। ब्रह्मा तो केवल सृष्टि के रचियता हैं ,जबकि माँ बालक की रचना के साथ साथ उसका पालन पोषण भी करती है। शिव संहार करते हैं ,जबकि माँ केवल पीड़ा को ही समाप्त करती है। बुद्ध प्राणी प्रेम के बिना अधूरे है ,देवताओं को भक्ति चाहिए। उनकी तुलना में माँ शर्त रहित प्रेम करती है।  माँ की करुणा के आगे करुणा के सागर अर्थात भगवान् भी फीके नज़र आते हैं। बच्चे भले ही माँ के प्रति समान व्यवहार न करे ,माँ की ममता सबके लिए समान होती है। माँ अपनी बच्चे की हर परेशानी को दूर करना चाहती है। वह स्वयं भूखी रहकर अपने बच्चे को खाना खिला देती है। बच्चा संसार को द्वारा ही जान पाता है। उससे चलना सीख पाता है। लेकिन बड़ा होकर बच्चे का व्यवहार माँ के प्रति बदल जाता है। लेकिन बच्चे की हर गलती को माँ माफ़ कर देती है। माँ स्वयं अपनी तरह होती है ,उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। 

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प्रश्न उत्तर अभ्यास 
प्र.२. बताइए – 

क. कविता में किसके बारे में बात की जा रही है ?

उ. कविता में कवि ने माँ के बारे में बात कही है। 

ख. माँ कब व्याकुल हो जाती है ?

उ. माँ अपने बच्चे के व्याकुल होने पर ही व्याकुल हो जाती है। 

ग. माँ को भूखा क्यों सोना पड़ता है ?

उ. माँ इसीलिए भूखी रहती है कि बच्चे का पेट भर सके। बच्चा खाना खा के सो जाता है और माँ भूखी सो जाती है। 
घ. संसार में परिवर्तन आया पर माँ के स्वभाव में परिवर्तन क्यों नहीं आया ?
उ. माँ करुणा की सागर होती है। वह अपने बच्चे से बिना शर्त के प्रेम करती है। इस प्रेम में कभी कोई परिवर्तन नहीं आता है। जबकि संसार में परिवर्तन के कारण माँ के बच्चे में परिवर्तन आ जाता है। 
लिखिए 

१. संक्षेप में उत्तर लिखिए – 
क. कवि की उलझन क्या है ?

उ. कवि की उलझन यह है कि माँ की तुलना करने पर कोई उसके समान नहीं है। संसार में कोई इसके समान नहीं है। आखिरकार माँ केवल माँ जैसी ही होती है। 
ख. ब्रह्मा भी माँ से कमतर क्यों है ?
उ. ब्रह्मा भी माँ से कमतर इसीलिए है क्योंकि ब्रह्मा केवल श्रृष्टि के रचयिता हैं जबकि माँ ना केवल बच्चे को जन्म देती है ,बल्कि उसका पालनपोषण भी करती है। 
ग. सभी देवों में किसका अभाव पाया जाता है ?
उ. सभी देवता अपने भक्तों को भक्ति के कारण प्रेम करते हैं। देवता भक्ति के भूखे होते हैं ,जबकि माँ अपने बच्चों को बिना किसी शर्त के प्रेम करती है। 

३. विस्तार से उत्तर लिखिए – 
क.कवि बार बार माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो ,क्यों कहते हैं ?
उ. कवि बार बार माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो ,कहने पर माँ की श्रेष्ट की बात कहता है। माँ की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। माँ बिलकुल माँ जैसी ही होती है। साथ ही कवि ने कविता में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया है। 
ख. माँ की किन्ही चार विशेषताओं के विषय में लिखिए। 
उ. माँ की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं – 

  • माँ अपने बच्चे की पीड़ा को चुन चुनकर दूर करती है।  
  • माँ बिना शर्त के अपने बच्चे से प्रेम करती है। 
  • स्वयं भूखी सो जाती है ,लेकिन अपने बच्चे का पेट भरती है। 
  • सारा संसार बदल जाता है ,लेकिन अपने बच्चे के प्रति माँ का प्रेम एकनिष्ठ रहता है। 
इन्ही विशेषताओं के कारण माँ का प्रेम अनुपम है। 
ग. अंत में कवि को किस बात का अफ़सोस है ?
उ. कवि को इस बात का अफ़सोस है कि सारा संसार बदल जाता है। इसमें बच्चा भी बदल जाता है। जो माँ अपने पूरा जीवन बच्चे के लिए न्योक्षावर कर देती है ,वहीँ बच्चा अपनी माँ को भूल जाता है। इसका अर्थ है कि माँ का त्याग -बलिदान के प्रति बच्चा कोई सम्मान नहीं रखता है।  

घ. करुणा की गागर और करुणा सागर के माध्यम से कवि क्या स्पष्ट कर रहे हैं ?
उ. कवि करुणा की गागर माँ को कहते हैं जबकि करुणा सागर भगवान् को कहते हैं। यह करुणा की गागर अर्थात माँ ,करुणा सागर अर्थात भगवान से भी बड़ी है। माँ भगवान् से भी बड़ी होती है। 

समझिये 
व्याकरण संबोध 
१. पर्यायवाची लिखिए – 
  • माँ – माता 
  • बादल – मेघ 
  • तन – शरीर 
  • सागर – समुन्द्र 
  • वर्षा – बारिश 
  • जग – संसार 
  • अद्भुत – अलौकिक 
  • व्याकुल – बेचैन 
  • पीड़ा – कष्ट 
२. विलोम लिखिए – 
  • क्षमा – दंड 
  • ज्ञानी – अज्ञानी 
  • लघु – गुरु 
  • तृप्त – अतृप्त 
  • जीवन – मरण 
  • कृतघ्नता – कृत्यज्ञता 

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