मेरे पास कुछ नहीं है

मेरे पास कुछ नहीं है

यह कैसे कह दूं,
कि मेरे पास कुछ नहीं है।
कितने गमों की सौगातों से,
भरी पड़ी है मेरी जिन्दगी।
दुःख इसका नहीं मुझें
कि बुरा हूं मैं,

मेरे पास कुछ नहीं है

बहुत जल्दी साजिशों का शिकार
हो जाया करता हूं मैं।
क्या आर्कषण ही,
प्रेम का मापदंड हुआ करती है?
हादसों से मेरा चेहरा क्या बिगड़ा,
कुछ को हाथ-पैर के मैल की तरह,
मेरे समर्पण को धोते देखा है।
नादानों के लिए मेरी यह भावनाएं,
शब्दों के तारतम्य के सिवाय कुछ भी नही।
लेकिन कुछ के लिए,
मन्दिर के दीये की तरह है,
जिस पर हाथ रखकर,
कुछ बदलने की ख्वाहिश रखते है।
दुनिया किसी की आज भी उजड़ती है,
कुछ के खण्डहर मिल जाते है,
कुछ का कहीं नामोनिशा नहीं होता है।
कैसे मान लूँ ,
लोग समझते और पहचानते है मुझें,
क्यों हर बार मुझसे पूछा जाता है,
क्या हाल है आपका?
कोई जरूर नहीं,
यहां सब कुछ मिल जाए मुझें,
जाते वक्त कुछ तो बोझ,
मेरा हल्का होना चाहिए।
जिस सुकून की तलाश में निकला था,
अपने जीवन को साथ लेकर,
पता चला वो तो खुदा के पास है।
आज टूटकर मैं,
माँ के आँचल में छिपना चाहा,
लेकिन कम्बखत शरीर का कद,
बड़ा निकला।
यह जख्म है,
या समन्दर का पानी,
खत्म ही नहीं होता।
किसको कहे हम,
यहां अमुल्य।
भगवान की मुर्तियाँ भी यहाँ
दामों में बिकती है।
यहां हादसों से अगर
खड़ी होती है भीड़,
तो एक हादसा मेरा भी होना चाहिए।
कोई क्या समझेगा,
मेरे एहसासों की कीमत,
कुछ चीजों के दाम नहीं हुआ करते।
मेरे जीवन का कोई
ठिकाना तो नहीं,
मगर मेरा नाम
लोगों के जुबान पर जगह ले लेंगे।
तु मुझसें अब कुछ भी न कह..ऐ जिन्दगी,
तु भूखे पेट सोते हुए,
एक बच्चे में भी जिन्दा है।

                           — राहुलदेव गौतम

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