बादल की आत्मकथा

बादल की आत्मकथा 

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हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने।
नीर सनेही कों लाय अलंक निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै।
प्रीति की रीति सु क्यों समुझै जड़ मीत के पानि परें कों प्रमानै।
या मन की जु दसा घनआनँद जीव की जीवनि जान ही जानै।।
मैं किसानों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता हूँ।पानी को लोग जीवन कहते हैं। मैं सच्चे अर्थ में जीवन दाता हूँ। यदि मैं
बादल की आत्मकथा
बादल की आत्मकथा 

निस्वार्थ भाव से जीवन दान करके जीवन रक्षा न करूँ तो इस सृष्टि की क्या स्थिति होगी ? मैं कभी कभी कुछ दिनों के लिए अपनी कृपा डोर खीँच लेता हूँ तो अनावृष्टि से क्या स्थिति हो जाती है ,आप अनुमान लगा सकते हैं। बंगाल का अकाल अभी भी लोग भूल नहीं सके हैं।वह मेरा क्षणिक रोष था। प्रकृति की प्रसन्नता ,धरती का सा उल्लास पुलक मेरी मुट्ठी में बंद है। मैं जब चाहूँ दृष्टि पलटते ही सब कुछ बदल जाता है। ऋतुओं की रानी वर्षा मेरी सहचरी है। ग्रीष्म ऋतू की प्रचंडता से धरती की प्यास मैं बुझाता हूँ। धरती की हरियाली मेरी देन हैं। बाग बागीचों और उद्यानों की सम्पूर्ण शोभा पल्लवन और पुष्पण का कारण मैं हूँ।शुष्क सरोवरों ,जलाशयों ,सरिताओं की श्री वृद्धि मैं करता हूँ।खेत में लहलहाती फसलों को देखकर कृषकों का मन मयूर की भाँती नाच उठता है।उस समय उनके कंठ से जो सिवर फूट पड़ता है उसके पीछे केवल मैं हूँ। मैं मेघ हूँ। मैं विविध आकार -प्रकार का हूँ।मैं सहज भी हूँ और कठिन भी। मैं जलचर का नहीं थलचर और नभचर का साथी हूँ।

आज का जीवन और समाज स्वार्थ ग्रस्त है ,स्वार्थ को लेकर एक राष्ट्र दूसरे से लड़ रहा है ,एक मजहब दूसरे मजहब से लड़ रहा है। एक मैं ही स्वार्थ से परे हूँ।मेरे लिए राजा रंक ,काला ,गोरा ,हिन्दू ,मुसलमान सभी एक समान हैं। इस परिवर्तनशील संसार में मेरा आदर्श अपरिवर्तनीय है। मैं कवियों का प्रिय विषय हूँ। शायद ही ऐसा कोई कवि होगा जिसने अपनी लेखनी से मुझे स्पर्श न किया हो।निराला का बादल राग मैं ही हूँ। अपनी संध्या सुंदरी की रचना के लिए जब उन्हें समान रुचिकर नहीं लगा तो मैंने उन्हें मेघमय आसमान लिखने का सुझाव दिया –
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, 
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में, 
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में, 
मन में, विजन-गहन-कानन में, 
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर- 
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! 
महादेवी वर्मा को प्रकृति प्रिय सुन्दरता के लिए लिखना पड़ा – रूपसी तेरे धन केश पाश। छायावादी कवियों मेरे सबसे निकट का सम्बन्ध कविवर पन्त से रहा है। हिमालय का सुरम्य पर्वतीय घाटियों में पन्त जी मेरे साथ आँख मिचौनी करते थे। 
निसंदेह मैं कवियों में बड़ा प्रिय रहा हूँ।कवि में आकर्षण और सुन्दरता को भूख रहती है।उनकी पुष्टि केवल मैं करता हूँ। उनकी कल्पना को इन्द्रधनुष परिधान मैं प्रदान करता हूँ।धरती से आकाश तक सुन्दरता का ताना – बाना मैं बुनता हूँ। मैं अत्यंत सरस और उदार हूँ।कठोरता मेरी नियति नहीं हैं।वह तो धरती की निष्ठुरता ,अन्याय और उत्पीडन के विरुद्ध मेरी एक चेतावनी है। मुझे सबकी आवश्यकताओं के ज्ञान रहता है। धरती को दंड स्वरुप ही मैं जल प्लावन की सृष्टि करता हूँ।मेरा सम्पूर्ण जीवन रचनात्मक है ,विध्वंसक नहीं।इसी कारण मैं सबसे बीच आदर और सम्मान पाता हूँ।अतः इसी मेरी आत्मकथा है। 

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