मुझको तुमसे प्यार नहीं

मुझको तुमसे प्यार नहीं 

कैद में रहना उन यादों के अब मुझको स्वीकार नहीं
जा अब मैं भी कहता हूँ,  मुझको तुमसे प्यार नहीं।

प्यार

इतनी यादों के सायों में कितना वक़्त गुजारा है
उन यादों से बंध के रहना मुझको नहीं गवारा है
मैं तो खूब तैर चुका हूँ ये दरिया होता पार नहीं
जा अब मैं भी कहता हूँ, मुझको तुमसे प्यार नहीं।

कब तक उन यादों की गठरी अपने सीने ढोऊंगा
कब तक उन पलो  के बूते खुशियों के पौधे बोऊंगा
मेरे लिए तो प्रेम ही जीवन, ये कोई व्यापार नहीं
जा अब मैं भी कहता हूँ, मुझको तुमसे प्यार नहीं।

तनहाई के उस गुलशन की अश्कों से प्यास बुझाता था
सावन का हर बादल मुझसे रूठ-रूठ के जाता था
सहरा की धरती सा जीवन, कहीं कोई गुलज़ार नहीं
जा अब मैं भी कहता हूँ, मुझको तुमसे प्यार नहीं।

हर आता जाता शख़्स मुझे तेरे चेहरे सा लगता था
तेरी नजरों का तीर कहीं दिल में गहरे सा लगता था
तू नजरें मुझसे फेर चुका, इस उपवन कोई बहार नहीं
जा अब मैं भी कहता हूँ, मुझको तुमसे प्यार नहीं।

दोहे  

जमीन हड़पने की खातिर, लील गए नदी तालाब
बारिश का पानी भी सोचे,किस और जाऊँ जनाब

कई पेड़ों का कोयला कर दिया, वृक्ष लगा न एक

विनोद कुमार दवे
विनोद कुमार दवे

नंगे पर्वत चीख रहे, भाई देख तमाशा देख

सब्जियां भी फीकी लगती, फलों में मिठास नहीं रही
सब केमिकल लोचा है, अब शुद्धता की आस नहीं रही

ईश्वर ने जब इस धरती को,अपने हाथों से बाँधा होगा
सोचा होगा मानव है, बाल न इसका बांका होगा

हुआ सरकारी पौधा रोपण ,पौधे लगे हजार
आधो को बकरी चाट गई, आधे गए स्वर्ग सिधार

जन्म से लेकर चिता जलाने तक, लकड़ी ने साथ दिया
हमने एक बीज न बोया, बस पेड़ों को काट दिया

कविता
राखी 

रक्षा का ही सूत्र नहीं ये प्यार की साखी है
लाज बहन की रख लेना ये मेरी पावन राखी है।
मैं बहना हूँ तेरी तू भइया सब का हो जा
मेरे नयनों के काजल से गंदी नजरें धो जा
मेरी सखियों की इज्जत भी मेरी इज्जत ही है
उस इज्जत को रख लेना ये धागे की साखी है
लाज बहन की रख लेना ये मेरी पावन राखी है।
हर बहना को हर भइया से रक्षा का वरदान मिले
जिस गली में कदम रखें वहां रक्षक इंसान मिले
उन बाजारों में न जाना जहां इज्जतें बिकती है
जाओ तो सोच के जाना ये राखी भी गिरती है
हर नुक्कड़ पर हर कोने में ऐसी लड़की रोती है
हर रोने वाली लड़की भी किसी की बहना होती है
उसकी आँखों में मेरे अश्कों की लड़ियाँ भी बाकी है
लाज बहन की रख लेना, ये मेरी पावन राखी है।

रचनाकार परिचय = साहित्य जगत में नव प्रवेश।  पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी,  कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि  में रचनाएं प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत।
संपर्क सूत्र – विनोद कुमार दवे,206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम, पोस्ट=भाटून्द ,तहसील =बाली ,जिला= पाली
 राजस्थान.306707.मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com

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