कबीरदास |
कुल करनी के कारने, ढिग ही रहिगो राम ।
कुल काकी लाजि है, जब जमकी धूमधाम ॥
यह जीव आया दूर ते, जाना है बहु दूर ।
बिच के बासे बसि गया, काल रहा सिर पूर ॥
चहुँ दिसि पाका कोट था, मन्दिर नगर मझार ।
खिरकी खिरकी पाहरू, गज बन्दा दरबार ॥
“कबीरदास“ भक्ति आन्दोलन के एक उच्च कोटि के कवि,समाज सुधारक एवं प्रवर्तक माने जाते है।इनका जन्म सं.१४५५ में हुआ था.कबीर ने जुलाहे का व्यसाय अपनाया था।इनका निधन १५७५ में मगहर में हुआ था। कबीर
कवि ही नही थे,बल्कि एक युग-पुरूष की श्रेणी में भी आते है।भक्तिकाल में
ही नही,सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में कबीर जैसी प्रतिभा और साहस वाला कोई
कवि दूसरा पैदा नही हुआ। उन्होंने भक्तिकाल का एकान्तिक आनंद जितना
अपनाया है,उससे भी अधिक सामाजिक परिष्कार का दायित्व निर्वाह किया है।