आत्मविश्वास का जादू
रामनगर नाम का एक नगर हुआ करता था। इसमें कई का गांव थे। जिसमें नागपुर नामक एक गांव था। उस गांव में एक महान फकीर रहते थे।
वह बहुत बुद्धिमान और प्रतिभावान थे। उनकी पूरा गांव सम्मान करता था। वह बहुत ही ज्ञानी के साथ दयावान भी थे। वह इतने प्रतिभावान होने के बावजूद भी एक सादगी पूर्ण जीवन गुजारते थे।
वह गांव में एक झोपड़ी में रहते थे। उनके पास कोई धन नहीं था। उनके पास केवल कुछ खाने के लिए बर्तन और ओढ़ने के लिए कंबल थे। वहीं उनकी पूंजी थी।
गांव वाले उनको कई विशेष भेट आदि देने आते थे। तब भी वह उनका अस्वीकार करते थे। यही उनकी की कहानी थी। उसमे उनकी महानता साफ झलकती थी।
एक समय की बात है। वह सर्दी का मौसम था। बहुत ही जोरदार ठंड पड़ रही थी। ठंड ऐसी की वह फकीर कंबल ओढ़े सो रहा था।
उन्होंने अपने दरवाजे में सांकल नहीं लगाई थी। क्योंकि वह फकीर को अपने पर पूरा भरोसा था। और ऐसा फकीर ही कैसा कि जिसको अपने फकीरी पर भरोसा ना हो।
वहां उसी समय एक चोर गांव में भटक रहा था। वहां उसे भटकने के बावजूद भी किसी के घर में घुसने में सफलता नही मिल पा रही थी। और वह इतनी ठंड में बहुत भूखा भी था।
वहां उसने एक झोपड़ी का दरवाजा खुला देखा। वह झोपड़ी फकीर की ही थी। वह भाग के उस झोपड़ी में घुसा। वहां फकीर घुसने की आवाज सुनकर तुरंत जाग गए। पर वह सोए रहे और तमाशा देखने लगे।
उस चोर को कुछ बर्तन और टूटे ग्लास के अलावा कुछ हाथ न लगा। वह गुस्से से लाल हो गया। एक तो इतनी ठंड में मैंने इतनी भूख के बावजूद बहुत मेहनत की।
पर मेहनत करने के बावजूद भी क्या हाथ लगा कुछ बर्तन और टूटे ग्लास? उसने अपने क्रोध को शांत करने के लिए फकीर का कंबल खींचा और अपने साथ ले लिया। उसको थोड़ा आत्मसंतोष मिला। वह कंबल और कुछ बर्तन-ग्लास लेकर दरवाजे के बाहर जाने की कोशिश कर रहा था।
वह फकीर ने यही सही समय जानकर उसे जोर से बोले,”वहीं रुक जाओ!”
उनकी गहरी और रूआबदार आवाज सुनकर वह चोर बहुत डर गया। इतनी कड़ी ठंड में भी वह पसीने से पानी-पानी हो गया। उसको लगा अब तो मैं गया।
पर यह क्या! यहां तो सारा मामला ही उल्टा हो गया।
वह फकीर तो उस चोर से माफी मांगने लगा। और कहां की, “माफ कर दीजिए। मुझे आपके आने का पता ना था। मैं आपको इतनी ठंड में मेरे घर से आपको संतुष्ट न कर पाया। मुझे आप अगली बार बता कर आना कि जिससे मैं आपके लिए कुछ एकत्रित करके लाऊंगा।”
इतना सुनकर वह दंग रह गया। वह वहां से भागने की कोशिश करने लगा। तब फकीर बोले की यह मेरा सामान तो लेते जाओ और हां दरवाजा बंद करके जाना क्योंकि बहार बहुत ठंड पड़ रही है।
उस चोर ने डर के मारे ठीक ऐसा ही किया।
सुबह हुई। चोर के हाथ में फकीर का सामान देख उसे गांव वालों के द्वारा पकड़ लिया गया। क्योंकि हर कोई फकीर के कंबल को पहचानते थे। इसीलिए सब ने उसे पकड़ लिया और पंचायत में ले गए। पूरे गांव के लोग उससे बहुत क्रोधित हो गए थे। क्योकि हरकोई के लिए फकीर एक प्रेरणा थे।
तुम्हें सिर्फ चोरी करने के लिए पूरे गांव के सम्मान फकीर की झोपडी ही मिली थी। पापी और क्या-क्या लोग उसके बारे में कह रहे थे। कुछ तो उसको फांसी की सजा देने की बात भी कर रहे थे।
तभी यह पूरी बात फकीर के कान में आ पहुंची। फकीर तो सुबह-सुबह भागते हुए गए।
वह पंचायत में जाकर चोर को बचाते हुए कहा कि, “यह आदमी चोर नहीं है। मैंने ही उसको अपना कंबल और कुछ सामान दिया था।” फिर क्या था जब खुद फकीर ही उसे निर्दोष कह रहे थे तो कौन उसे चोर कह सकता था?
सब गांव वालों के जाने के बाद वह चोर फूट-फूट कर फकीर के पैरों में गिर के रोने लगा।
जाहिर सी बात है वह आत्मग्लानि की आग में जल रहा था। बाद में उसने फकीर का आजीवन शिष्य बनने की जिद पकड़ी। फकीर ने उसको अपना शिष्य मान लिया।
यह देखकर वह बहुत खुश हुआ। कहने की जरूरत नहीं है उस फकीर को उसका कंबल और बर्तन भी मिल गए थे।
वह झोपडी में जाकर उस चोर पर बहुत हसा और कहा कि,”देखा! मैंने अपना सामान तो ले ही लिया और साथ में मुझे अपना आजीवन शिष्य भी मिल गया। याद रखो कि फकीर का कोई भी सौदा घाटे का नहीं होता।”
सार: यह है आत्मविश्वास की ताकत। आत्मविश्वास से व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। दूसरे के भरोसे या फिर बहुत सारा धन से या धर्म या सत्ता की ताकत से आत्मविश्वास नहीं आता।
वह अपने अंदर से ही आता है। हां यह सब उसको प्रभावित कर सकते हैं। पर आत्मविश्वास अपने मनोबल से ही आता है। ऐसा आत्मविश्वास की जैसा इस कहानी में उस फकीर को अपनी फकीरी पर था।
मेरा नाम दिशांत पंचाल है। में एक ब्लॉगर हूँ। मेरा एक ब्लॉग है जिसका नाम aavomi.कॉम है। मुझे लोगो को मोटीवेट करना बहुत पसंद है। इसलिए में लोगो के लिए मोटिवेशनल कंटेंट लिखता हूँ।