इंसान
हर एक नजर मे इस तरह है प्यार ढूंढते
शैतानों के शहर मे है इंसान ढूंढते ।
यूँ पल – पल का इस तरह हिसाब ढूंढते ।
हर इंसा मतलबी हो चला है अब
जो अपना हमें कहे वो महरबान ढूंढते ।
बेवक्त के शहर मे अब वक्त ही नहीं
सभी के लबों पर दुआ – सलाम ढूंढते ।
ये इंसा नशे मे इतना है डूबा
हर एक गली मे अपना मका है ढूंढते ।
जो जख्म था वो अब नासूर बन गया
अपनी ही तरह सबको बेकरार ढूंढते ।
जो लोग जिगरी दोस्त थे कभी
दुश्मनों की लिस्ट मे अपना नाम ढूंढते ।
रिश्ते – नाते सब के सब धूल हो गए
पैसों मे ही सब माई – बाप ढूंढते ।
भारत – पाक की आखिर सुलह कराएँ कौन
हर घर के आंगन मे रणक्षेत्र ढूंढते ।
यह रचना पुष्पा सैनी जी द्वारा लिखी गयी है। आपने बी ए किया है व साहित्य मे विशेष रूची है।आपकी कुछ रचनाएँ साप्ताहिक अखबार मे छप चुकी हैं ।