माँ – मंगल ज्ञानानुभाव

प्रिय मित्रों, भारतीय विकिपिडिया में रणजीत कुमार के स्तम्भ मंगल ज्ञानानुभाव के अंतर्गत आज प्रस्तुत है – ‘माँ‘ । आज का स्तम्भ समर्पित है – माँ की ममता को,माँ की करुणा को ,उनके प्रेम को । आशा है कि आप सभी को यह लेख पसंद आएगा। इस सन्दर्भ में आप सभी के सुझाओं की प्रतीक्षा रहेगी ।

माँ

अव्यक्त जब व्यक्त होता है तो व्यक्ति का स्वरुप है और व्यक्ति जब सार्थक पहल करता है तो अभिव्यक्ति होती है. व्यक्ति से अभिव्यक्ति का जो सफर है वही जीवन की परिभाषा है. अभिव्यक्ति सहज विस्तार है हमारे अंतर्मन के रचनात्मक छमता का. माँ ईश्वरीय अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा है जिसकी अभिव्यक्ति के विस्तार में हमारा अस्तित्वा है. हर इंसान सेवा भावना से प्रेरित है और ये सर्वश्रेष्ठ परिलक्षित होता है माँ के प्यार में जब वो अपने बच्चे के लिए कुछ करती है. माँ की भावना ये नहीं होती की प्यार से प्रेरित बच्चे के लिए उसके कर्म का कुछ मोल हो ये बीना किसी शर्त का प्रेम प्रायः हर माँ को पूर्णता का एहसास देता है. इश्वर की तलाश कैसी जब माँ का सानिध्य प्राप्त हो. मेरा निजी अनुभव विचित्र हो सकता है पर ये सच है की माँ के प्रेम का क्या मोल वही जीवंत इश्वर है मेरे लिए. आज अकेलेपन में वो स्पर्श वो होसला जब नहीं मिल पाता तो उदास मन खोजता है माँ का प्रेम. ये प्रेम शायद मेरे लिए ईश्वरीय शक्ति जैसा है. मेरे हर स्पंदन हर आहट हर शब्द के पीछे की प्रेरणाशक्ति उसकी मौन अभिव्यक्ति का विस्तार मात्र है.

माँ तुम करुणा की प्रतिमूर्ति और मेरे अस्तित्व का नीव हो। तुम्हारे आँचल की सानिध्यता में मेरा स्वर्ग है. मैं उस मौन करुणा को दंडवत प्रणाम करता हूँ. मेरे लिए ईश्वर की खोज का आदि और अंत तुम्हारे चरण हैं. हो सकता है संकेत के आभाव में मैं कार्तिकेय की भाँती तुम्हारी परिक्रमा छोड़ विश्व को नापने निकला हूँ निसंदेह ये मेरी मूर्खता हो सकती है. पर मेरा प्रेम मेरी आदर्श और निरंतर प्रगतिशील रहने की प्रेरणा तुम्ही हो. तुम्हारे आध्यात्मिक आभा के परिधि में सुरक्षित मैं वचन देता हूँ मलीन नहीं होने दूंगा तुम्हारे द्वारा प्राप्त ये जीवन.

माँ के उस विशाल प्रेम गंगोत्री में डुबकी लगाता हुआ जीवन की पगडंडियों पर प्रसन्न आनंद मार्गी मैं

सत्यान्वेषी …………..

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