अनुस्वार और अनुनासिक – Anushwar और Anunasik

अनुस्वार और अनुनासिक

बिंदु या चंद्रबिंदु को हिंदी में अनुस्वार और अनुनासिक कहा जाता है। अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।

1. अनुस्वार 

इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।

पंचम वर्णों के स्थान पर

अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् – ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।

उदाहरण:

  • गड्.गा – गंगा
  • चञ़्चल – चंचल
  • झण्डा – झंडा
  • गन्दा – गंदा

अनुस्वार के चिह्न के प्रयोग के बाद आने वाला वर्ण ‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग और ‘प’ वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।

2. अनुनासिक

जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख।
हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर तथा 33 व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या 48 हो जाती है।

अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग

जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का प्रयोग करते हैं। जैसे – मैं, बिंदु, गोंद आदि।

अनुस्वार और अनुनासिक उदाहरण

बूँद,  आँखें , हंस ,  हँसना , फंसा , फांस , अंगद, अंतर , अंश , रंजिश , लंका , मंजन , बंदर , अँगूर , लँगूर , मंजूर , गुँजन , गूँज , पूँजी , पूँजीवाद , पूंजीपति, मूँज , चंदन , अंजलि , मुंदरी , चंद्रिका , चाँद , चांदनी , चंद्रमा , चंचल , चंपक , खंजर , मंजरी , टांग , टंकी , टंगा , ताँगा , लंबा , लंबाई , ऊँचाई , ऊँचा , ऊँची , ऊँट , अँगुली , अँगूठी , अँगरेज़ , रंगरेज़ , रंगाई , कंगन , कंगारू , घंटा , शँख ।

Anushwar और Anunasik

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