प्रथम चुंबन – दो शब्द
दिल के
शिलालेख पर प्यार की छैनी से
लिखे गये वह प्रथम मिलन के पलों का
वह जिंदगी में कभी न भूलने वाला
वह अप्रतिम अमिट अंकन–
वह तुम्हारे शहद से
कानों में घोलते हुए हृदय की कंदराओं में उतरते शब्द
वह मेरे तन को उद्देलित करते तुम्हारे बाहों का स्पर्श
और जब तुमने
अपने अधरों से मेरे कंपकपाते अधरों पर अंकित किया था वह प्रथम चुंबन–
एक पल के लिए
शायद रूक गयीं थीं बहती शीतल हवायें भीं–
दूर पहाड़ी पर
मंदिर की बज उठी थी घंटियां
मानो हमारे मिलन को दे रहीं हो दुआएं भी–
मन की वीणा के सुप्त तार भी एकाएक हो गये थे स्वर लहरी छेड़ने को झंकृत भी–
और हो गया था उन पलों के साथ मेरी नसों में बहता हुआ रक्त स्तब्ध भी–
अजीब था
दूर क्षितिज पर होता हुआ वह आकाश और धरा का मधुर आलिंगन – –
और जब तुमने
अपने अधरों से मेरे कंपकपाते अधरों पर अंकित किया था वह प्रथम चुंबन–
चांद भी शरमा कर
छुप कर झांकता था बादलों की ओट से–
निरझरणी फूट गयी प्यार की
दो दिलों के धड़कनों की हुई उस चोट से–
कोंपलें पनपने लगीं पेड़ की शाखाओं पर
खिल गयीं बाग में कलियाँ सभी–
महकने लगे सूखते और निर्जन पड़े कुंज सारे
छायी थी जहां वीरानी कभी–
बांध गया था दो दिलों को
एक अमिट, सुखद, अनजाना सा बंधन–
और जब तुमने
अपने अधरों से मेरे कंपकपाते अधरों पर अंकित किया था वह प्रथम चुंबन–
– राजीव रावत
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