भाव पवित्र हों तो क्रिया पावन होता ही है. नवरात्र उसी भाव में डूबने का अवसर है. बलि अगर इस अवसर पर सूक्ष्म अहंकार का हो तो जीवन उत्सव बन जाता है. नवरात्र शक्ति को आत्मसात करने का मौका है. शक्ति स्वरुप माँ की अराधना वस्तुतः जीवन के श्रोत की अनुभूति है. माँ के अनेक रूप हैं माँ दिव्य है और ममता की प्रतिमूर्ति भी. मुझे बचपन के वो दिन याद हैं जब आरती होती थी और हम गाते थे ‘कहत शिवानंद स्वामी जो कोई नर गावे ……………………….’ शब्द ध्वनि अंतर्नाद कब मन्त्र मुग्ध कर देते हैं ज्ञात नहीं होता. मैंने अपने पिताजी को विशेष रूप से उस भाव में देखा है जहाँ भक्त भगवान और भक्ति का समागम होता है. ‘मांगू क्या जो मिली है जीवन कृपा ही है तुम तो हो माँ तुमसे क्या छिपा ही है’.
मैं एक काव्य से भाव अभिव्यक्त करता हूँ
माँ हृदय थाल ले हाँथों में तेरे मंदिर पर आया हूँ
कोई पुष्प नहीं कोई नहीं प्रसाद सजल नेत्र बस लाया हूँ
क्या मांगू माँ मैं तुमसे यहाँ जो मिला है मैं आभारी हूँ
कुम्हला जाए वो फूल नहीं अमृत से सींचा क्यारी हूँ
मैं तो हूँ अभिव्यक्ति तेरी आनंद के इस कैनवास पर
मैं तो ध्रुब तारे के भाँती स्थापित इस बिस्वास पर
की माँ के आँचल का सानिध्य ईश्वर की छत्रछाया है
घर घर में व्याप्त ईश्वर हो इसलिए माँ बनाया है
तेरे चरणरज माँ मेरे ललाट के चन्दन ही है
हर सांस तेरी कृपा की साक्षात अभिनन्दन ही है …………….
नवरात्र के पावन अवसर पर माँ को दंडवत प्रणाम