इस जल प्रलय में – फणीश्वरनाथ रेणु

इस जल प्रलय में फणीश्वरनाथ रेणु

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इस जल प्रलय में पाठ का सारांश 

इस जल प्रलय में पाठ या रिपोर्ताज ‘इस जल प्रलय में’ लेखक ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ जी के द्वारा लिखित है | 18 घंटे लगातार वर्षा होने के कारण सन् 1967 में बिहार की राजधानी पटना और उससे सटे क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ का संकट आ गया था, जिस त्रासदी को लेखक ने खुद भोगा था | उसी विध्वंसक स्थिति को लेखक ने इस रिपोर्ताज के माध्यम से वर्णित किया है | लेखक के अनुसार, उनका गाँव एक ऐसे विशाल और सपाट परती क्षेत्र में था, जहाँ आस-पास अन्य दिशाओं से बहने वाली नदियाँ, जैसे — कोसी, पनार, महानंदा और गंगा की बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह वहाँ आकर पनाह लेते थे | अर्थात् वहाँ शरण लेकर अपना जीवन सुरक्षित रखने का प्रयास करते थे | परती इलाके में जन्म लेने के कारण लेखक को तैरना नहीं आता था | 
आगे लेखक कहते हैं कि सन् 1967 में पटना में निरन्तर 18 घंटे की बारिश की वजह से पुनपुन का पानी
इस जल प्रलय में
इस जल प्रलय में

राजेन्द्रनगर, कंकड़बाग तथा दूसरे निचले भागों में भी घुस गया था | लेखक कहते हैं कि जब पटना का पश्चिमी इलाका लगभद छाती भर डूब गया, तो वे घर पर ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी, सिगरेट, कंपोज़ की गोलियाँ आदि इकट्ठा करके बैठ गए थे | सुबह लेखक को पता चला कि राजभवन और मुख्यमंत्री निवास बाढ़ के चपेट में आकर डूब गए हैं | दोपहर में खबर मिली कि गोलघर डूब गया है | शाम में लेखक अपने एक कवि मित्र के साथ कॉफ़ी हाउस में बाढ़ के पानी का हाल जानने उत्सुकतावश निकल गए | लेखक ने बाढ़ के आक्रमणकारी मिजाज व प्रभाव के बारे में आते-जाते लोगों द्वारा आपस में जिज्ञासावश एक-दूसरे को बाढ़ की सूचना से अवगत कराते देखा | जब लेखक कॉफ़ी हाउस पहुँचे, तो वह उन्हें बंद मिला | तत्पश्चात्, लेखक और उसके मित्र ‘अप्सरा सिनेमा हॉल’ के बगल से गाँधी मैदान की ओर चल दिए | गाँधी मैदान और उसके आस-पास की चीजें पूर्णतः बाढ़ के चपेट थीं | सबकुछ जलमग्न हो चुका था |

शाम के साढ़े सात बजे पटना के आकाशवाणी केंद्र से स्थानीय समाचार प्रसारित हो रहा था — “बाढ़ का पानी हमारे स्टूडियो की सीढ़ियों तक पहुँच चुका है तथा किसी भी वक़्त स्टूडियो में प्रवेश कर सकता है…|” खबर सुनकर  लेखक और कवि मित्र गम्भीर हो गए | परन्तु, बाढ़ का पानी देखकर आ रहे लोग पान की दुकानों पर खड़े-खड़े हँस-बोलकर समाचार का आनंद ले रहे थे | बाढ़ जैसी गम्भीर परेशानियों से मुँह चुराकर, कुछ लोग ताश खेलने की तैयारियों में जुटे थे | 
राजेंद्रनगर चौराहे पर मैगज़ीन कॉर्नर पर पूर्ववत् पत्र-पत्रिकाएँ बिछी दिख रही थीं | वहाँ से लेखक हिन्दी-बाँग्ला और अंग्रेजी सिने पत्रिकाएँ लेकर घर वापस लौटा | तत्पश्चात्, उन्होंने अपने कवि मित्र से विदा लेते हुए कहा — ” पता नहीं कल हम कितने पानी में रहें…, लेकिन जो कम पानी में रहेगा, वो ज्यादा पानी में फंसे मित्र की सुधी लेगा…|” लेखक अपने फ्लैट में पहुँचे ही थे कि वहाँ उन्हें जनसंपर्क विभाग की गाड़ी से लाउडस्पीकर द्वारा बाढ़ के खतरे से सावधान करने के लिए घोषणाएँ सुनाई देने लगी | लेखक कहते हैं कि सारे राजेन्द्रनगर में ‘सावधान-सावधान’ की ध्वनि कुछ देर गूँजती रही | दुकानों से सामान उठाए जाने लगे | 
लेखक कहते हैं कि रात में देर तक उनको नींद नहीं आ रही थी | वे कुछ लिखना चाहते हैं और तभी उनकी कुछ पुरानी यादें उनके स्मृतिपटल पर सक्रिय हो जाती हैं | सन् 1947 में मनिहारी (तब पूर्णिया जिला और अब कटिहार जिला) में बाढ़ आई थी |  लेखक अपने गुरुजी (स्व. सतीनाथ भादुड़ी) के साथ नाव पर दवा, किरासन तेल, ‘पकाही घाव’ की दवा, दियासलाई आदि लेकर बाढ़ से पीड़ित प्राणियों की सहायता करने के लिए वहाँ गए थे | तत्पश्चात्, लेखक अपनी स्मृतियों के सहारे कहते हैं कि सन् 1949 में महानंदा नदी ने भी बाढ़ का कहर ढाया था | लेखक बापसी थाना के एक गाँव में बीमारों को नाव पर चढ़ाकर कैंप ले जा रहे थे, तभी एक बीमार के साथ उसका कुत्ता भी नाव पर चढ़ गया |जब लेखक अपने साथियों के साथ एक टीले के समीप पहुँचे तो वहाँ एक ऊँची मचान बनाकर ‘बलवाही’ (एक प्रकार का लोकनृत्य) का नाच हो रहा था | लोग मछली तलकर खा रहे थे | एक काला-कलूटा ‘नटुआ’ लाल साड़ी में दुलहन के हाव-भाव का किरदार निभा रहा था | 
आगे लेखक कहते हैं कि सन् 1967 ई० में जब पुनपुन का पानी राजेंद्रनगर में प्रवेश कर गया था, तब कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों की टोली नाव पर स्टोव, केतली, बिस्कुट आदि लेकर जल-विहार करने निकले थे | नाव पर स्टोव जल रहा था | केतली चढ़ी हुई थी | बिस्कुट के पैकेट खुले थे | पास में ही रखा ट्रांजिस्टर पर गाना आ रहा था — ‘हवा में उड़ता जाए, मोरा लाल दुपट्टा मलमल का, हो जी हो जी…!’ जैसे ही उनकी नाव गोलंबर पहुंची और ब्लॉकों की छतों पर खड़े लड़कों ने शरारत भरे अंदाज़ में उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया | बाद में उन फूहड़ युवकों की सारी बदमाशियाँ छू-मंतर हो गईं | 
लेखक के अनुसार, रात के लगभग ढाई बज गए थे, किन्तु पानी अभी तक नहीं आया था | लेखक को लगा कि शायद इंजीनियरों ने तटबंध ठीक कर दिया हो | या फिर शायद कोई दैवी चमत्कार हुआ हो गया हो | सारे फ्लैटों की रौशनी जल-बुझ रही थी | सभी जग रहे थे | लेखक को अचानक अपने उन मित्रों की याद आ गई थी, जो कल से ही पाटलिपुत्र कॉलोनी, श्रीकृष्णपुरी, बोरिंग रोड आदि में भयावह जल संकट में घिरे थे | लेखक ने फिर से बिस्तर में करवट बदलते वक़्त सोचा कि कुछ लिखा जाए, लेकिन वे सोचे लिखूँ भी तो क्या लिखूँ ? इससे अच्छा है पुन: अपनी स्मृतियों को जगाया जाए | तत्पश्चात्, वे पुन: एक घटना को बताते हुए कहते हैं कि पिछले साल अगस्त में थाना नरपतगंज के अधीन चकरदाहा गाँव के पास लगभग छातीभर पानी में खड़ी एक गर्भवती महिला, जो हमारी ओर गाय के समान टुकुर-टुकुर निहार रही थी | तत्पश्चात् इधर-उधर की बातों को सोचते-सोचते लेखक को नींद आ जाती है | 
जब लोगों ने लेखक को सुबह के साढ़े पाँच बजे जगाया, तो लेखक आँख मलते हुए उठे | उन्होंने ने देखा कि सभी जागे हुए थे और पानी मोहल्ले के अंदर घुस चुका था | हर तरफ़ शोर, कोलाहल, कलरव, चीख, पुकार और पानी की लहरें दिखाई-सुनाई पड़ रही थीं | सबकुछ जलमग्न हो चुका था | 
चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था | पानी बहुत तेजी से आगे की ओर बढ़ रहा था | सामने की ईंट की दीवार जल्दी-जल्दी डूबती जा रही थी | बिजली के खंभे का काला हिस्सा डूब गया था | लेखक कहते हैं कि बाढ़ का दृश्य तो उसने बचपन में भी देखा था, परंतु इस तरह अचानक पानी का चढ़ आना उन्होंने पहली बार देखा था | आगे लेखक कहते हैं कि अच्छा हुआ जो ये बाढ़ रात में नहीं आया | देखते ही देखते गोल पार्क डूब गया था | हरियाली कहीं गुम हो गई थी | जिधर दृष्टि जाती थी, पानी ही पानी नज़र आता था…||  

इस जल प्रलय में पाठ के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे ?

उत्तर- बाढ़ की ख़बर ने लोगों में कोहराम सा मचा दिया | लोगों में अफरा-तफरी मच गई | लोग अपने-अपने सामान ऊपरी मंजिल या ऊँची जगहों पर ले जाने लगे थे | सभी अपने-अपने घरों में खाने का सामान, दियासलाई, मोमबत्ती, दवाईयाँ, किरोसीन आदि की व्यवस्था करने में जुट गए थे | खरीद-बिक्री या व्यवसायिक लेन-देन बंद हो गया था | सभी दुकानदार अपना-अपना सामान रिक्शा, टमटम, ट्रक, टेम्पो आदि पे लादकर उसे किसी सुरक्षित और सपाट परती स्थानों पर ले जाने लगे थे | 
प्रश्न-2 बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था ?

उत्तर- पूर्व में लेखक ने बाढ़ के बारे में बहुत सुना था | परन्तु, वह कभी बाढ़ को साक्षात देखकर अनुभव नहीं किया था | इससे पहले लेखक ने बाढ़ की तबाही से संबंधित अपनी अनेक रचनाओ में उल्लेख किया था | पर वह इस बार स्वयं अपनी आँखों से बाढ़ के पानी को शहर में घुसते और कहर बरपाते देखने और अनुभव करने को उत्सुक था | 
प्रश्न-3 सबकी ज़बान पर एक ही जिज्ञासा — ‘पानी कहाँ तक आ गया है ?’ इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं ? 

उत्तर- सबकी ज़बान पर एक ही जिज्ञासा — ‘पानी कहाँ तक आ गया है ?’ इस कथन से जनसमूह की यह  भावनाएँ व्यक्त होती हैं कि सभी सिर्फ बाढ़ की विनाशलीला को देखने के लिए उत्साहित और जिज्ञासु थे | लेखक और उसके मित्र के अलावा कोई गम्भीर नहीं था | बल्कि कुछ लोग तो ताश खेलने के बारे में सोच रहे थे | जनसमूह की भावनाओं का दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि लोगों में बाढ़ के खतरे को लेकर चिंताएँ चरम पर रही होंगी | वे बाढ़ के विनाश से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय सोचने में फंसे होंगे | उन्हें यह भी लग रहा होगा कि किसी भी प्रकार से बाढ़ का खतरा टल जाता | 
प्रश्न-4 ‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों ? 

उत्तर- ‘मृत्यु का तरल दूत’ बाढ़ के बढ़ते जल स्तर को कहा गया है | बाढ़ के विनाशकारी रूप ने न जाने कितने बस्तियों को निगला था | सैकड़ों-हजारों लोगों की मृत्यु का कारण बना था | अनगिनत लोग बेघर हो गए थे | न चाहकर भी उनको पलायन करने पर विवश होना पड़ा था | 
प्रश्न-5  ‘ईह ! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए…अब बूझो !’ —  इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है ? 

उत्तर- ‘ईह ! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए…अब बूझो !’ —  इस कथन द्वारा लोगों की स्वार्थ से परिपूर्ण और ओछी मानसिकता पर चोट की गई है | संकट के समय में एक-दूसरे की मदद करने के बजाए लोग अपने निजी स्वार्थों को अधिक महत्व देते हैं | प्रतिशोध की भावना की अधिकता है लोगो में | लोगों के अंदर से धीरे-धीरे इंसानियत का ख़त्म होती जा रही है | लोग किसी संकटग्रस्त व्यक्ति की कुशलता जानने की जरूरत भी नहीं महसूस करते | 
प्रश्न-6  खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी ? 

उत्तर- खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक इसलिए बढ़ गई थी, क्योंकि बाढ़ को तबाही मचाते हुए देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए थे | उन्हें बाढ़ के दुष्परिणामों की तनिक भी चिंता नहीं थी और न ही वे भयभीत थे | 
बल्कि वहाँ लोगों का हंसी-खुशी और कौतुहल भरा नजारा था | ऐसे में पान की खिल्ली चबा-चबाकर लोग बाढ़ के आनंद में खोए थे तथा पान उनके लिए समय व्यतित करने का सबसे अच्छा साधन था | 
प्रश्न-7 जब लेखक को यह अहसास हुआ की उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए ? 

उत्तर- जब लेखक को यह अहसास हुआ की उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उन्होंने रोजमर्रा की कुछ जरूरी चीजों का संग्रह करने प्रयास किया | जैसे ईंधन, मोमबत्ती, आलू, दियासलाई, कम्पोज की गोलियाँ, पीने का पानी आदि | लेखक ने बाढ़ के खतरे से बचने के लिए छत पर चले जाने का भी प्रबंध कर लिया था | ताकि बाढ़ की विनाशकारी स्थिति से कुछ समय तक दृढ़तापूर्वक लड़ा जा सके | 
प्रश्न-8 बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है ? 

उत्तर- बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में बहुत सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है, जिनमें प्रमुख हैं — हैजा, टाइफाइड, मलेरिया, चमड़े से संबंधित बिमारी इत्यादि | 
प्रश्न-9 नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया | दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया ? 

उत्तर-  कभी-कभी मनुष्य और पशु के आत्मीय गहरे लगाव के कारण, दोनों में गहरी मित्रता हो जाती है | परस्पर भेद-भाव का अंत भी सुनिश्चित हो जाता है | नौजवान और कुत्ता में भी आत्मीय संबंध था, जिसके कारण नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया था | यह घटना दोनों के परस्पर गहरे मित्रतापूर्ण संबंध को दर्शाता है | 

इस जल प्रलय में पाठ का शब्दार्थ

• विनाश –        तबाही, बर्बादी 
• पनाह –         शरण, आसरा 
• सपाट –         समतल 
• परती –          बंजर भूमि, जहाँ पर खेती नहीं होती 
• विभीषिका –   भयंकरता, विध्वंसक 
• अनवरत –      निरन्तर, लगातार, बिना रुके 
• अनर्गल –       विचारहीन, बेतुकी, मनमानी
• स्वगतोक्ति –   स्वयं में कुछ बोलने की क्रिया 
• अस्फुट –       अस्पष्ट 
• आच्छादित –   ढका हुआ,  
• उत्कर्ण –        सुनने को उत्सुक 
• आसन्न –        पास आया हुआ 
• मुसहरी –       एक प्रकार का आदिवासी जनजाति 
• बलवाही –      एक प्रकार का लोक-नृत्य 
• आसन्नप्रसवा – जिसे आजकल में ही बच्चा होने  वाला हो 
• उत्सव –           त्यौहार | 

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