गरीब चोर नहीं होता

गरीब चोर नहीं होता

     
हमें  एक शादी के लिए दिल्ली जाना था। चूंकि शादी अचानक तय हो गयी थी, इसलिए बड़ी मुश्किल से थर्ड ए सी में जगह मिल पायी थी। जल्दी से पूड़ी और आलू की सब्जी बनायी। मेरे पति की आदत है कि रात की ट्रेन में कुछ ज्यादा ही भूख लगती है, पूड़ी और आलू की सब्जी उनकी फेवरिट है।
             
उस दिन ट्रेन में भीड़ थी, जैसे तैसे अपनी सीट पर बैठे, भाग्य अच्छा था, दोनों नीचे की वर्थ थी। चलने समय था नो बजे लेकिन बैठते ही खाने की डिमांड शुरू हो गयी।
                
तभी एक दम – बारह साल का बच्चा चाय चाय की आवाज़ लगाता हमारे डब्बे में आ गया, श्रीमान जी ठहरे पक्के शौकीन उन्होंने तुरंत दो कप चाय ले ली। तभी ट्रेन चल पड़ी, मैने उस लड़के से कहा – –
–ट्रेन चल दी है तू उतरेगा कैसे?
-आंटी, आप फिक्र न करो, मैं बीना तक चलूंगा
-क्यों तुम्हें, टी टी पकड़ते नहीं हैं?
-ना ना आंटी, भैया लोगों की सब सेटिंग रहती है।
गरीब चोर नहीं होता
वह आगे चला गया, चाय पीकर मैं वाशरूम चली गयी और लोटकर आयी थी, पेपर बिछाकर खाना लगा दिया। पूड़ी कुछ अधिक बन गयीं थी, इसलिए चार पूड़ियां बच गयी, मैने अपने पतिदेव से कहा –
-ये बेकार फैकने से अच्छा है कि किसी गरीब को दे दें
उनका दिमाग पेपर की न्यूज में था, बस हां का सिर हिला दिया।
तभी वह चाय वाला लड़का चाय चाय की आवाज़ लगाता लौटा, मैने उससे कहा कि–
–बेटा, पूड़ी खाओगे?
वह एक मिनट कुछ सोचता रहा और वहीं नीचे फर्श पर बैठ गया, मैने उसे पूड़ी, सब्जी दे दी। 
वह जल्दी जल्दी खा रहा था, मैने उससे कहा –
–आराम से खा लो बेटा,
उसने मेरी ओर देखा और बोला-
– अभी आंटी सारी चाय बेचना है, आज सुबह मां बीमार थी, इसलिए रोटी नहीं ला पाया था, सच्ची बहुत भूंख लगी थी।
–कितना कमा लेते हो रोज?
-आंटी, एक कप पर एक रूपया मिलता है।
वह खाना कर खड़ा हो गया और हाथ धोकर  आया और एक कप चाय उसने मेरे पति की ओर बढ़ दी, उन्होंने मना किया तो कहने लगा-
-अंकल इस चाय के पैसे नहीं लूंगा।
-क्यों,मैने पूंछा तो कहने लगा
–आंटी जी, मुझे सचमुच भूंख लगी थी, इसलिए आपसे पूड़ी खा ली लेकिन मैं भिखारी नहीं हूं, कम से कम एक चाय तो बदले में दे सकता हूं।
उसकी खुद्दारी देखकर हम दंग रह गये, वह तेजी से दूसरे डिब्बे में चला गया।
अचानक पतिदेव बोले कि भाई को गाड़ी नंबर बता तो ताकि वह समय पर कार भेज सकें। मैने अपना मोबाइल देखा कहीं नजर ही नहीं आ रहा था, सारे कपड़ों को उलट-पलट कर डाला किंतु कहीं नहीं था, दिमाग पर जोर डाला, अभी कुछ समय पहले तो मैं लिए हुए थी।
-लगता है वह चाय वाला ही मार ले गया, दूसरी सीट पर बैठे यात्री ने कहा।
–हां, ये साले ऐसे ही मनसाहत का बदला देते हैं, कौन सा फोन था?
–आइ फोन था–मेरे चैहरे पर हवाईयां उड़ रहीं थी, बड़ी जिद के बाद तो यह फोन आया था।
–और पूड़ियां खिलाओ और पुन्य कमाओ,
पतिदेव भी अपनी झल्लाहट मुझ पर ही निकाल रहे थे।
–भाई साहब, बीना आने वाला है, बीस मिनट गाड़ी रूकती है, वह उतरेगा पकड़ लें, एक यात्री ने सलाह दी
-वैसे अब मिलना मुश्किल ही है, इन हराजादों का पूरा गिरोह होता है, एक चुराता है और दूसरा – तीसरा लेकर गायब हो जाते हैं।            
राजीव रावत
राजीव रावत
ट्रेन के बीना स्टेशन पर स्लो होते ही पतिदेव उठ खड़े हुए, मैं भी इनके साथ दरवाजे पर खड़ी हो गयी, दूर डिब्बे से वही लड़का एक हाथ में चाय का बर्तन पकड़े चलती ट्रेन से ही उतर गया तथा दूसरी वापस जाती ट्रेन मे चढ़ गया तो इन्होने भी उतर कर लगभग दौड़ते हुए उसे झटके से पकड़ कर खींच लिया, प्लेटफार्म पर उसकी चाय बिखर गयी। वह अचानक हुए इस पकड़ा धकड़ी से घबरा गया।
–साब, मेरी चाय आपने गिरा दी और मुझे क्यों पकड़ लिया।
–साले तूने मेरा मोबाइल चोरी की और भाग रहा है, पतिदेव ने झापड़ उसको रसीद कर दिया।
चारों ओर भीड़ लग गयी और जब मालूम चला कि मोबाइल चोर है तो सभी टूट पड़े। उसके हाथ में मोबाइल नहीं था तभी पुलिस भी आ गयी।
पुलिस से शिकायत करने पर हवादार ने भी दो झापड़ रसीद कर दिये–
-बता मादर—, न जाने कितनी गालियां एक सांस में दे डाली, – – साले हरामजादे, चल थाने जब पिछवाड़े पर पड़ेगी तब तेरा हरामजादे बाप भी याद करके बतायेगा कि मोबाइल कहां है।
वह रोये जा रहा था और यही कह रहा था कि –
–साब मैं तो सिर्फ चाय बेच रहा था, मां मैने नहीं चुराया। मुझे छोड़ दीजिए मैंने कुछ नहीं किया।
लेकिन कौन सुनने वाला था उसकी पुकार।ट्रेन का समय हो रहा था, जल्दी कागज पर रिपोर्ट लिखकर दी और इंस्पेक्टर का मोबाइल नंबर लेकर पतिदेव उदास मन से वापस आ गये। 
दिल्ली जाने का मजा किरकिरा हो गया था। ट्रेन चल दी थी और हम दोनों अब भी दरवाजे पर खड़े बाहर देख रहे थे मानो मोबाइल दिख जायेगा। हम लोग सीट पर जाने के लिए मुड़े ही थे कि किसी मोबाइल पर रघुपति राघव राजाराम पतित के पावन सीताराम की डायलर टोन बजने लगी, अचानक याद आया यह तो मेरे मोबाइल की डायलर टोन है, मैं तेजी से बाथरूम की ओर भागी, बाथरूम मे हाथ धोने वाले स्टैंड के ऊपर अलमारी में मेरा मोबाइल बज रहा था। मुझे अब याद आया कि मै फ्रेश होने आयी थी तो हाथ मोबाइल था और हाथ साफ करने के लिए यहां रख दिया और हाथ पोछते हुए बाहर आ गयी और अभी तक किसी की नजर उस नहीं पड़ी थी।
हम दोनों स्तब्ध खड़े थे, मोबाइल मिलने की खुशी नहीं हो रही थी, उस बिचारे गरीब अबोध लड़के को कितनी मार और गालियां तो मिली और हमेशा के लिए चोर का ठप्पा लगवा दिया था। हम दोनोंआपस में निगाहें नहीं मिला पा रहे थे।
–सुनिये, पुलिस इंस्पेक्टर को फोन कर दीजिए कि उस बिचारे को छोड़ दें।
पतिदेव ने फोन लगा कर बोल दिया कि
–हम अब कोई केस नहीं करना चाहते क्योंकि बार बार हम नहीं आ पायेगे उसे छोड़ दें .
लेकिन सच बताने की हिम्मत नहीं आयी, हम दोनों के मन में एक कुंठा थी, हम लोग चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गये। रात भर नींद नहीं आयी, उसकी चीखें ट्रेन की खिड़की पर दस्तक दे रहीं थी मानो कह रहीं हैं-
– मेम साब गरीब होने के बाद भी हमारी भी कुछ इज्जत है, हम सारे गरीब होने से चोर और हरामजादे नहीं हो जाते। 
                                   

– राजीव रावत ,
भोपाल (म0प्र0)

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