पटाखे

पटाखे


कितने अजीब हैं, पटाखे

पटाखे
पटाखे

गरीबी- अमीरी की खाई खोदते
जिसके पास ज्यादा होते
वे अमीर हैं दिखते
न जाने कितनो  को अपंग बनाते
पर फिर भी लोग खरीदते हैं, पटाखे
उससे भी ज्यादा अजीब हैं, हम
पढ़े- लिखे गवार हैं, हम
अपने ही हाथो, प्रकृति का कत्ल करते हैं, हम
न जाने क्यों पटाखे खरीदते हैं, हम

जरा सोचो अगर, न होते ये पटाखे
शांत सी ये प्रकृति, शांत सा ये देश
लगती राम नगरी सी, प्रभु घर आते
आती फिर माँ लक्ष्मी भी, पर फिर भी
न जाने क्यों लोगो को अच्छे लगते हैं
ये पटाखे..

  -राजेन्द्र कुमार शास्त्री ( गुरु ) 
सम्पर्क सूत्र – rk399304@gmail.com 
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