विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों का महत्व | Importance Of Books In Students Life

विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों का महत्व 

Pustak ka mahatva per Hindi nibandh importance of book पुस्तक का महत्व पर निबंध पुस्तकों का महत्व निबंध हिंदी में Importance of Books in Hindi Pustak ka Mahatva विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों का महत्व जीवन में पुस्तकों का महत्त्व पुस्तक सफलता की कुंजी है Essay On Importance of Books In Hindi – पुस्तक का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इस पुस्तक का मानव के जन्म के साथ ही ग्रंथि बंधन गहरा हो जाता है। जन्म के समय के कुछ सप्ताह अपने निरीक्षण की योग्यता के समान ही बालक अपने वातावरण के गहन निरीक्षण द्वारा उससे परिचय प्राप्त करता हुआ दिखायी देता है। कुछ महीनों बाद ही वह अपने परिचित एवं परिवार के लोगों के लिए विशेष भावना विकसित कर लेता है। उदाहरण के लिए माता – पिता और परिवार के सदस्य को देखते ही बालक प्रसन्न हो जाता है। इस समय माँ ही पुस्तक के समान बालक को स्व – विवेक के आधार पर शिक्षित करती है। कुछ माह बाद परिवार मोहल्ला आदि तक क्षेत्र का विस्तार हो जाता है। ४ वर्ष की उम्र के बालक का पुस्तक से प्रथम साक्षात्कार होता है। विद्यालय में उसके सहपाठी और वातावरण उसको व्यावाहारिक शिक्षा देते हैं। 

धर्म और नैतिकता का ज्ञान 

अब पुस्तक रामचरितमानस जिसको पढ़ने से मनुष्य का सारा मन परिवर्तित हो जाता है। किसी विद्वान का विचार है कि मानव जीवन में पुस्तक माँ के समान ज्ञान प्रदान करती है। वह ज्ञान के साथ ही धर्म और नैतिकता का पाठ

विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों का महत्व | Importance Of Books In Students Life

पढ़ाती है। सत्य बोलना ,बड़ों की आज्ञा का पालन करना। धर्म और नैतिकता का प्रत्यक्ष ज्ञान ,पुस्तक भी देती है। तुलसीदास जी के अनुसार – 

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जा घट तन में प्राण॥
कभी कबीरदास जी के ज्ञान के अनुसार ,हमें यह स्पष्ट करती है कि मान का सम्मान उसके कर्म से होता है। परिवार से नहीं – 
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होइ ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदै सोइ ।।

पुस्तक का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान

कभी वह मित्र के समान मानव को सत्य और न्याय के मार्ग पर आगे बढ़ने का संकेत करती है तो कभी अन्याय के मार्ग पर बढ़ने से रोकती है। 
भीति न निति गलिती यह ,जो धरिये धन जोरि 
रखाए खरचे जो जुरे ,जो जोरिस करोरी।
कहीं वह आत्म सम्मान की भावना से मन की पूर्ण कर अपमान का विरोध करने की प्रेरणा देती है – 
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।

इस प्रकार स्पष्ट है कि पुस्तक हमें जन्म से मृत्यु तक ,सुख ,दुःख ,घर ,बाहर ज्ञान का दीप प्रज्वलित करके मन के अन्धकार को दूर कर देता है। अतः स्पष्ट है कि माँ ,पिता ,बहन ,पत्नी और प्रेमिका के रूप में पुस्तक हमें आवाज देकर बुलाती हुई प्रतीत होती है। आपत्ति में धैर्य ,धर्म ,आत्मविश्वास ,दृढ़ता ,क्रिया दक्षता का अनुभव हमें पुस्तक के द्वारा ही होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पुस्तक का मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। 

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