सार्थक सोच

सार्थक सोच

महमूद दस वर्ष का मासूम  लड़का था।वह अपनी साठ वर्षीय बूढ़ी दादी माँ के साथ रहता था।उसके माता पिता एक दुर्घटना में चल बसे थे।बूढ़ी अम्मा महमूद को देखकर अपने भाग्य को कोसती रहती थी। 
मिठाइयां
दीपावली का दिन था।आस पड़ोस के सभी बच्चे बाजार से पटाखे,फुलझड़ी ,मिठाइयांआदि लेने बाजार जा रहे थे। चारों तरफ चहल पहल थी।सभी बच्चे अपने मम्मी पापा से पैसे लेकर खरीददारी करने जा रहे थे।
महमूद का एक साथी था गोलू। गोलू ने अपने पिता जी से पटाखों के लिए 200 रुपये लिए।वह 200 के पटाखे लेने की बजाए 50 रुपये के पटाखे खरीदता है और 150 की मिठाई खरीद कर महमूद को दे देता है।
महमूद यह देखकर सोचता है कि आज मेरे पास भगवान आ गया है।जब उसे दो वक्त की रोटी नसीब न होती थी उसे मिठाई मिल गई। गोलू ने महमूद से कहा-पटाखे तो दो मिनट में भड़ भड़ करके शोर व वायु प्रदूषण पढ़ाएंगे। हम एक दूसरे की सहायता करके दीपावली मना सकते हैं। 
महमूद की आँखों में आँसू भर आए क्योंकि वह सोचता है कि यदि ऐसी करुण सोच सबकी हो जाए तो हर दिल में दिवाली जगमग हो सकती है। इससे शोर,वायु व मन का प्रदूषण भी समाप्त हो जाएगा।आपस में भाई चारा भी बढ़ेगा।
– अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
सम्पर्क 9050978504

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