चेहरा

चेहरा


कुहरे में एक
घुला हुआ चेहरा
ओंस की बूँदों से
धुला हुआ चेहरा
सुबह की धूप से
तपा हुआ चेहरा

चेहरा

इन्द्रधनुष के ऊपर
रखा हुआ चेहरा
तरवर पर जैसे
खिला हुआ चेहरा
भरोसे की दीवार पर
टँगा हुआ चेहरा
सौन्दर्य के अर्थशास्त्र में –
लिखा हुआ चेहरा
ईद के चाँद सा
दिखा हुआ चेहरा
कुमकुम और मंजरी से –
घिरा हुआ चेहरा
हौंसलों के हाथ से –
गुथा हुआ चेहरा
भाग्य की हथेली में
छिपा हुआ चेहरा
अश्रुओं की खुशियों से
भरा हुआ चेहरा
प्यार की उम्मीदों से
सजा हुआ चेहरा
जीवन का उद्‌देश्य है
तेरा चेहरा
मेरा चेहरा

प्यास बनूँ 

सत्य बनूँ
विश्वास बनूँ
जीवन हूँ
मैं जीवन का आभास बनूँ
गति मानव में –
रहना ही है
कुछ बनना
कुछ चुनना ही है
हर आशा की भूख बनूँ
और भाषा की प्यास बनूँ
मन का सुन्दर
संकेत बनूँ
चेत सकूँ
जो अचेत बनूँ
दर्द से बाहर दूर बनूँ
तो खुशियों के भी पास बनूँ
मैं तो मृत्यु का
साँस बनूँ
जीवन का
उपहास बनूँ
तुम गन्ध बनो
मैं श्वास बनूँ
मैं मधुर – मधुर का आस बनूँ

डा० महेन्द्र नारायण’ . लगभग ३हजार रचनाएँ सभी विधाओं में अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित मुक्ति रेखा व द्रौपदी की दुम दो कहानी संग्रह प्रकाशित प्रधान सम्पादक “प्रेरणा”(कालेज पत्रिका) पिछले २६ वर्षों से निरन्तर साहित्यिक डायरी लेखन

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