तेरे साथ जो भी पल जिया
तेरे साथ जो भी पल जिया, कुछ अनकहा कुछ अनछुआ ।
कुछ प्रीत से सराबोर से , कुछ चुप से थे कुछ बोर से ,
कभी दिन ढले कभी शब खिले , थे अचानक यूँ हम मिले ,
तुझे देखना तुझे सोचना , उस रब से तुझको मांगना ,
सब कुछ इतना भला लगा ,तेरे साथ जो भी पल जिया ।
कुछ फूल से कुछ शूल से , नादानियों से भूल से ,
खामोशियों से तूल से , कसक से थे कुछ हूल से ,
उस पल मे हम जी गए , उस पल मे हम बह गए ,
कितना गहरा खुमार था , तेरे साथ जो भी पल जिया ।
था दर्द तेरा दवा भी थी , थे बेवफा कुछ वफा भी थी ,
परिंदों के पर काट कर , परवाजों पर थी नजर लगी ,
तेरी चाहतो मे हम जी गए , तेरी चाहतो मे मर मिटे ,
कुछ अनपढ़ा सा था फलशफा , तेरे साथ जो भी पल जिया ।
यह रचना पुष्पा सैनी जी द्वारा लिखी गयी है। आपने बी ए किया है व साहित्य मे विशेष रूची है।आपकी कुछ रचनाएँ साप्ताहिक अखबार मे छप चुकी हैं ।