अब शाम नहीं गुजरती उनके बिना

अब शाम नहीं गुजरती उनके बिना

अब शाम नहीं गुजरती उनके बिना
हम शमां जलाये बैठे रहते हैं
दिन के उजाले में भी।

अब शाम नहीं गुजरती उनके बिना

अब घुटन सी होने लगी
जिम्मेदारीयाॅ सम्हालते-सम्हालते
जैसे हम खुद कैद हो गये
दीवार बनाते-बनाते।

अब हमें रिश्ते की कोई दुहाई न दे
इन धागों में खुद उलझ गये
इन्हें सुलझाते-सुलझाते।

दीये की रौशन से
घर के अंधेरे गुलजार तो हो गये
मगर मिट गये हम
दिल के अंधेरे मिटाते-मिटाते।
 

     

– राहुलदेव गौतम

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