मैं हसरतों के साथ
मैं हसरतों के साथ नयी बस्तियां लिये चलता हूं,
मैं इरादों के दरिया में कई कश्तियां लिये चलता हूं।
मैं इसीलिए अपनी लाश की अस्थियां लिये चलता हूं।
यह जो दीवार है शिकस्त का आदमी आदमी के बीच,
मैं खुद अपने जज्बातों की आंधियां लिये चलता हूं।
गर बिक जाती है शोहरत भीड़ से और बाजार में तो,
मैं भी अपनी जायदाद की हस्तियां लिये चलता हूं।
अब बेशुमार हसरतों की भीड़ से भरा हूं रफ्तार में,
मैं सचमुच अपनी रेल की पटरियां लिये चलता हूं।
ता-उम्र समझौते इस जीवन का बोझ लिये रहता हूं,
मैं कदम कदम पर अपनी दुश्वारियां लिये चलता हूं।
-राहुलदेव गौतम