गुरु का महत्व

गुरु का महत्व

गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है | गुरु हमारे दुर्गुणों को हटाता है | गुरु के बिना हमारा जीवन अंधकारमय होता है | अँधेरे में जैसे हम कोई चीज टटोलते हैं,नहीं मिलती है वैसे गुरु के बिना टटोलने वाली जिन्दगी बन जाती है जहाँ कुछ भी मिलने वाला नहीं है | जिस व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं मिला उसके जीवन में दुःख ही दुःख रहा | वह एक सहजयुक्त जीवन नहीं जी सका | गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है | हमें जीवन जीने का सहीं रास्ता बताता है जिस रास्ते पर चलकर जीवन को संवारा जा सकता है | एक नई ऊँचाई को छुआ जा सकता है इसलिये गुरू हमारे लिये किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं | माता पिता तो हर किसी को होते हैं लेकिन गुरू का होना जीवन का मार्ग बदलने की तरह होता है |
गुरु
गुरु
गुरु इस संसार का सबसे शक्तिशाली अंग होता है | कोई चीज सीखने के लिये बिना गुरू का अध्ययन नहीं किया जा सकता है | अलग-अलग चीजें सीखने के लिये अलग-अलग गुण के गुरूओं की जरूरत होती है | सिलाई सीखने के लिये सिलाई गुरू का होना जरूरी है | ड्राईवर बनने के लिये ड्राईवर गुरू की जरूरत होती है | डॉक्टर बनने के लिये डॉक्टर गुरू के पास जाना ही पड़ेगा तभी हम इन कला पर विजय प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा जिन्दगी भर हाथ पाँव चलाते रहिये बिना गुरू के किसी कला को नहीं सीखा जा सकता है | गुरू मिलने मात्र से नहीं होता है | गुरू के प्रति हृदय से श्रध्दा होनी चाहिये जब हृदय से श्रध्दा होगी तो आप उस कार्य की समस्त बारीकियाँ सीख सकते हैं | गुरू पूर्णरूपेण आपको पारंगत कर देगा |
गुरु बहुत ही सीधा सादा होता है | गुरु भले ही लंगड़ा लूला या गरीब है लेकिन गुरु गुरु होता है | वह अपने शिष्य के प्रति कपट व्यवहार नहीं करता है | वह अपने शिष्य को पारंगत कर देना चाहता है | अपने शिष्य को बढ़ते हुये देखना चाहता है | अपने शिष्य का काँट छाँट करता है | उसके प्रत्येक कमी को निकालता है | उसे ठोंक ठोंककर कुम्हार के घड़े की तरह सुंदर बनाता है | अपने शिष्य को संपूर्ण बनाने में समस्त ज्ञान उसके सामने उड़ेल देता है | यही तो सच्चे गुरू का गुणधर्म होता है | कपटी गुरू का गुण किसी काम का नहीं होता है | वह पूरा ज्ञान अपने शिष्य को नहीं देता है | वह ज्ञान न उसके लिये ही लाभदायक होता है न दूसरे के ही जीवन को संवार सकता है | गुरू चुनते समय हमें सच्चे गुरू की तलाश करनी चाहिये | कपटी गुरू से हम सच्चे हुनर को नहीं प्राप्त कर सकते हैं |
गुरु को भी कपटी नहीं होना चाहिये यदि शिष्य पूरी तरह से समर्पित रहता है तो उसे सहज होकर जो विद्या ज्ञान लेना चाहता है | उसे देने में पूर्ण तल्लीन हो जाना चाहिये तभी गुरू शिष्य की परंपरा को जिन्दा रखता जा सकता है | गूरू शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है | इस शुध्द परंपरा का पालन करने वाला ही सच्चा गुरू व शिष्य कहलायेगा, तभी जीवन सार्थक हो सकता है, तभी जीवन एक गौरवशाली बन सकता है | गूरू को अपनी मर्यादा पालन करते रहना चाहिये और शिष्य गुरू के प्रति समर्पित होकर शिक्षा लेता है तो वह एक महान लक्ष्य को हासिल कर लेता है | कोई बाधायें उन्हें नहीं रोक सकती है |
– जयचन्द प्रजापति कक्कूजी

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