मिले नहीं रास्ता हमारा
ढूँढते रहे हम अपना जमाना
मिले न कहीं रास्ता हमारा I
धुऑं,धुऑं सा हो रहा
चारों तरफ बेबसी
प्रात: सो रही ऊंगती
आँखें नम हो गई
आँसुओं का सहारा
मिले न कहीं रास्ता हमारा I
राहें सूनी सूनी सी
उपवन भी उजड़ा
ऐसा लग रहा है मानो
रोता हर एक मुखड़ा
शाम ढलने आ गई
होता हर एक पहरा
मिले न कहीं रास्ता हमारा I
नीला अम्बर पूछे मुझसे
कैसी ये ख़ामोशी
झूँठी झूँठी सी लगती है
हर तरफ रौशनी
जवाँ हो रहे है शब्द
कलम ले सहारा
मिले न कहीं रास्ता हमारा I
यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 , ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.
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