आँख खोलकर चल नारी

आँख खोलकर चल नारी

मातम खत्म हुआ नहीं, यहाँ रावण की ऊँचाई माप रहे।
अब आँख खोल कर चल नारी, यहाँ सपोले गहराई नाप रहे।।

जिस नाग के जकड़न में बंध कर, मौन खड़ी हो गयी तू कल ।

आँख खोलकर चल नारी

आज पैर उठा कर उसी नाग पर, रख दे फन को तू यूँ कुचल।।

ऐ मर्द ज़रा तू सम्भल कर चल, कोख मेरी है मेरे विचार।
दिन दूर नहीं जब दुनिया में बेटों पर होगा अत्याचार।।

जंग यहाँ मानवता की, जिसे सियासत ने किया तार तार।
अब शस्त्र उठाकर आगे बढ़, कर वहशियों पर तू अपने वार।।

हर रोज़ ये नाम बदलेंगे, हर रोज़ बदलेंगें उम्र ये बार बार।
न बदलेगी उसकी सोच कभी, जिसने कहानी बनाई हज़ार।।

कपड़ों के पहनावे या उम्र से नहीं चलता यह बाज़ार।
दरिंदगी सोच में है जिसकी, उसके भीतर पनपे तुच्छ विचार।।

मातम खत्म हुआ नहीं, यहाँ रावण की ऊँचाई माप रहे।
अब आँख खोल कर चल नारी, यहाँ सपोले गहराई नाप रहे।।



– शेख अलिशा
जिला कोरिया, छत्तीसगढ़

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