परशुराम का आह्वान
भस्मासुर के कुछ अंश शेष बचते हैं ,
जो दशकों से षड्यंत्र यहां रचते हैं ।
पुण्यो से है जो विरत पाप में रत है ,
सब एक तथ्य से भलीभांति अवगत है ।
“भय रहेगा जब तक यह साम्राज्य रहेगा,
जो सज्जन है चुप होकर वार सहेगा। “
किस में साहस जो हमसे प्रश्न करेगा?
इस भ्रष्ट तंत्र से आखिर कौन लड़ेगा?
करते हो जहां पर राज्य सुनीति पालक,
करते हो जहां पर नष्ट पाप को पावक।
हां वही सकल वंचक श्रृगाल भूकेंगे ,
जो सर्प विषैले है वो गरल थूंकेंगे है ।
है जो चिरंजीव बलराशि उन्हें पुकारो,
संकट की घड़ी में परशुराम पग धारों ।
जब सत को सत कहने का प्रण कर लेंगे ,
और अन्यायी से न्याय भी लड़ कर लेंगे ।
तब परशुराम उर में धारण कर लेंगे ,
तब परशुराम उर में धारण कर लेंगे ।
निर्दयी आक्रमण से जो घाव मिले थे,
कई बार करो उसे अपने उन्हें सिले थे।
मूर्खों! उनको फिर से तुम मत छेड़ो रे,
उन पर प्रमाद का लेप ना अब फेरो रे।
वीरता प्रवंचित जहां वाक से छल है,
यह छद्म आवरण ही प्रपंच का बल है।
रिपु आए वेश बदल कर तो पहचानो,
अपनी प्रज्ञा से तौल सत्य को जानो।
पुरखे अपने जिनमें विष दंश सहे है,
अंतिम घड़ी में उनने सारांश कहे हैं।
पिछली भूलों को फिर से मत दोहराओ,
छोटी विजयो पर मत इतना बौराओ।
संयम दृढ़ हो तो शक्ति प्रबल होती है,
यौयूत्स्य देख मृत्यु भी विफल होती है।
अरि के गौरव का गान नहीं सुनना है,
अपने बल पर इतिहास नया बुनना है।
अब सौर ,शाक्त ,वैष्णव और शैव रहेंगे,
या सकल बंधुवर खुद को आर्य कहेंगे।
जब कामधेनु वसुधा हमसे छीनी थी,
तब पितृ पुरुष की अस्थियां हमने बिनी थी।
वह कहती वीर भरत कि अब जागो रे !
करने तर्पण सिंधु तट को भागो रे !
– भावेश सोमेश्वर ताटके
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