हे अन्तर्यामी अनादि अनंत

हे अन्तर्यामी अनादि अनंत

काहे नही देखत विलाप मेरा,
प्रभु  सबके संकट हरने बारे।
कबसे मेरे नैना तकते,
प्रभु राह तुम्हारी निहारत हारे।
समूचे जीवन  है नाम किया,
तुमको गिरिवर, बँसी बारे।
तुम जानत हो सबकी पीडा,
जीवन से मैटो कलेश हमारे।
तुम बिन नही कोई प्रभु मेरा,
जो विनती सीघ्र,स्वतः स्वीकारे।
प्रभु मोहे चरण की छाप दींजो,
इससे आगे न विचार विचारे।
जीवन की डोर बंधी तुमसे,
प्रभु करो प्रकाश , हरो अँधियारे।
तुम निकट खड़े हो प्रभु मेरे,
मेरे नैना यही स्वपन सँवारे।
हे अन्तर्यामी अनादि अनंत ,
रहो आजीवन तुम संग हमारे।
अंतिम विनती है मुरलीधर ,
दर्शन देकर मोहे भव से तारें।
     
 -प्रिया राठौर
अम्बाह , मुरैना(म.प्र)
      

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