फर्क – हिंदी कविता
फर्क इतना ही है बस
तुम ढूंढ़ते हो अवसर,
हम पाकर ,
खो देते हैं,
अवसर,
फर्क इतना ही है बस,
तुम सोच कर कहते हो,
हम कह कर सोचते हैं,
बात दिल की,
बात दिमाग की,
जो भी हो,
अपनेपन की,
तुम समझाते रहे,
हम समझते रहे,
फर्क इतना ही है बस…
– धेनुका,आर्यन मीना,मुन्दावर,
अलवर,(राज.)301407,
7073364635