क़त्ल

क़त्ल

शोभाबाज़ार थाने में सुबह से ही अफरा तफरी मची थी… सभी हैरान थे.. ये थाना है. मार पीट चोरी हत्या के किस्से यहाँ आम होते हैं.. पर ये कोई मामूली बात नहीं थी.. मधुरिमा खुद चल के आई थी थाने तक.. और खुद कबूला था अपना जुर्म.. नहीं उस पर किसी का भी दबाव नहीं था शायद.. 
क़त्ल
मधुरिमा.. चौबीस साल की एक खूबसूरत लड़की.. लड़की.. नहीं तवायफ.. वह मधुरिमा जिसकी अदाओं के सब दीवाने थे.. खुद एस.पी साहब भी उसके कायल थे..
उसके बताये मुताबिक पुलिस उसकी कोठी के कमरे तक पहुंच गयी थी..युवक का शव भी बरामद हो चुका था.. मामला साफ था.. नशे में धुत युवक पर हसिये से वार कर उसकी हत्या की गयी थी.. पर ये सब मधुरिमा ने किया है इस पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था..
मधुरिमा अपने नाम की तरह ही मीठी थी.. उसे एक बार जो देख ले फिर उससे नज़रें नहीं हटा पाता था.. माध्यम कद का गंठा हुआ शरीर.. गोरा रंग.. काले लंबे बाल.. गुलाबी होंठ जिन पर हमेशा सजी रहती थी वह कातिलाना मुस्कान..
मिश्री से मीठी ज़ुबान और फूल सा बदन और इससे भी नाज़ुक उसका मन..
पर जुर्म उसने खुद कुबूला था.. 
आखिर अगर उसने अपने कस्टोमर का खून किया भी तो क्यों?
तमाम पूछताछ के बाद भी उसने कुछ नहीं बताया.. खीज कर एस.पी साहब ने उसे अलीपुर पागल खाने भिजवा दिया..
पागलखाने में एक छोटी सी कोठरी में उसे अन्य पागल औरतों के साथ घुसा दिया गया.. कोई उसे देख कर हंसती.. कोई मुंह चिढ़ाती.. पर वह इन सब से बेखबर किसी अलग दुनिया में खोयी हुई थी.. मन में कई सवाल थे.. जिनका वह जवाब ढूंढ रही थी.. साहसा आठ साल पहले का दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया..
रोहित.. रोहित.. की चीखें कमरे में बार बार गूंज रही थीं.. 
निधि "श्री"
निधि “श्री”
“कहाँ है रोहित.. मुझे रोहित के पास जाना है..” कहते हुए वह दरवाज़े की तरफ भागी.. तभी पीछे से किसी ने उसके पैरों पर बेल्ट से मारा.. सकपका के गिर पड़ी थी वह.. पर अपने रोहित के साथ किसी अनहोनी की शंका में उसकी आत्मा कांप रही थी.. तीन दिन से भूखी थी .. इस जगह पर कैसे आई उसे याद नहीं.. बस याद था तो इतना कि सौतेली माँ के अत्याचारों से तंग आ कर वह भाग आई थी बारासात अपने रोहित के पास.. रोहित उसे बहुत प्यार करता था.. उस रात रो रो कर उसने रोहित के सीने में अपना मुंह छुपा लिया था.. और वह उसे अपने बच्चे की तरह पीठ पे थपकी दे कर सुलाता रहा था.. पर जब नींद खुली तो वह एक कमरे में बंद थी.. जहां पर तीन दिन तक कोई उससे मिलने नहीं आया था..
दलाल को थोड़ी दया आ गयी थी उस पर.. इसलिए फोन मिला कर उसने अपनी और रोहित की बातें सुना दी उसे.. उसके बाद उसनेे मुंह से एक शब्द नहीं निकाला या यूँ कहें कि निकल ही नहीं पाया.. उसे अपनी ज़िन्दगी गर्त में जाती हुई दिखी.. पर उससे निकलने की छटपटाहट ज़रा भी ना दिखाई उसने… सोलह बरस की लड़की.. इतना तो जानती थी कि अब यहाँ से निकलना नामुमकिन है.. और इन लोगों कि बात मानना उसकी मजबूरी.. या फिर किस्मत.. नरक जैसी ज़िन्दगी को और नरक क्यों बनाना.. लिहाजा शीतल बाई को उसे मार पीट कर तैयार करने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी.. और वह उसके काम से बहुत खुश रहने लगी.. 
सहसा जैसे उसकी नींद टूटी हो.. एस.पी. साहब उसके सामने खड़े थे.. बड़े सहज भाव से उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहा- “लड़का कलकत्ता विश्वविद्यालय से शोध कर रहा था. बारासात का रहने वाला था.. रोहित नाम था उसका..” तुम किसी को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रही.. मुझे तो अब भी विश्वास नहीं कि तुमने उसे मारा मधुरिमा.. 
उसने नज़रें उठा कर एस पी की ओर देखा.. उसकी आँखें लाल थी.. लग रहा था जैसे उन में लावा फूट रहा हो.. 
फिर मुस्कुराते हुए बोली-“मारा तो उसने था मुझे साहब.. आठ साल पहले..”
और एस.पी साहब उसे हतप्रभ से देखते रहे…
रचनाकार परिचय 
निधि “श्री”
छात्रा(महिला महाविद्यालय)
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
ईमेल-nimi3799@gmail.com

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