भारत का शेर गरज रहा है
देख दानव का दल ,
भारत का शेर गरज रहा है ।
जलाने जुल्मी का जीवन ,
बनके आग, बरस रहा है “।
अपनी कुर्बानी देकर वो ,
दिन -रात, लङ रहा है ।
ना लगे दामन मे दाग ,
माँ की , लाज बचा रहा है ।
एक देश द्रोही ; दुश्मन के संग ;
जस्न , मना रहा है ।
एक माँ के , बीर सपूत !
अपने , खून बहा रहा है ।
बुनियादी की लहरों मे ,
तुफान मचा रहा है ।
चिरकर ; छाती दुश्मन के ;
सबकी लास , बिछा रहा है ।
एक दरिन्दे , और यहाँ !
नया , खेल रचा रहा है ।
शहीद भारत के लाल ,
दुध का, कर्ज चुका रहा है ।
कर ! हर मुश्किल का सामना ,
“वो” आगे बढ़ रहा है ।
हजारों , गोली , खा- खाकर !
धर्म युद्ध , लङ रहा है ।
गंदे हाथों से ; जिसने गंदा ;
भारत को , कर रहा है ।
उसके खूनो से , बीर सहासी,
भारत को , सजा रहा है ।
हिंसा को मार , अहिंसा के !
तिरंगा लहरा रहा है ।
“वे” फौलादी , शहीद सब अपने !
चिता जला रहा है ।
कुछ ” शोक प्रकट ; करते , देश प्रेमी !
तो कुछ, आंसू बहा रहा है ।
इस धर्म युद्ध मे , सब आपनी ,
भूमिका निभा रहा है ।
जलती चिता की धूऐं ! सब,
जय हिन्द की , गाथा – गा रहा है।
बीर सहासी ; शेरों पर ;
भारत , गर्व कर रहा है ।
आज , गर्व कर रहा है