जैन साहित्य
जैन साहित्य की विशेषताएं jain sahitya ki pravritiyan jain sahitya in hindi jain sahitya ki visheshtaye – हिंदी साहित्य के आदिकाल में कुछ जैन मतावलंबियों द्वारा अपनी साहित्य सेवा के माध्यम से अपने विचारों का प्रचार किया गया। इन साहित्यकारों के भाव बड़े ही व्यापक है और इनकी शैली अत्यंत विस्तृत है। इन्होने अपने साहित्य में तीर्थंकरों की जीवनियाँ प्रस्तुत की है और साथ ही साथ विश्व वर्णन भी किये हैं।इन्होने जैन रामायण और हरिवंश पुराण में राम – रावण और महाभारत की एक विचित्र और प्रचलन भिन्न कथा कही है।
जैन साहित्य में दार्शनिकता का वर्णन है। संसार की विविध वस्तुओं को विविध दृष्टिकोण से देखने से एक ऐसी उदार दृष्टि प्राप्त होती है ,जिससे विरोध की भावना हटती है और प्रेम का प्रसार होता है। मोक्ष इनका अंतिम लक्ष्य है। मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बतलाये गए हैं। इस साहित्य के प्रमुख कवि स्वयंभू देव ,पुष्पदंत ,हेमचंद आदि है।प्रबन्ध काव्य के क्षेत्र में स्वयंभू अपभ्रंश के आदि कवि हैं।अपभ्रंश का कोई भी परवर्ती कवि ऐसा नहीं है जो स्वयंभू से प्रभावित न हुआ हो।उनकी रचनाओं में पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ, स्वयंभू छंद प्रमुख है।
जैन साहित्य की विशेषताएं
हिंदी में जैन साहित्य की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –
- यह प्रधानतः काव्यात्मक साहित्य है।
- यह व्याकरण के नियमों से बंधा है।
- इससे हमें साहित्य में आदिकाल की स्थिति का पता चलता है।
- इनकी भाषा पर अपभ्रंश का विशेष प्रभाव है।
- इसमें कहीं कहीं गद्य के दर्शन होते हैं।
- इसमें शांत रस की निष्पत्ति हुई है।
- दोहा का प्रयोग किया गया है। रास ,चरित आदि छंदों का प्रयोग भी हुआ है।
- अनेक पौराणिक और एतिहसिक व्यक्तियों का चित्रण
- काव्य सौन्दर्य दिखलाना इनका लक्ष्य नहीं था।